प्रकाशिक यंत्र (Optical Instrument)

 Bihar Board 12th Physics Notes In Hindi

प्रकाशिक यंत्र (Optical Instrument)

वैसा यंत्र जिसके सहारे प्रकाश की उपस्थिति में किसी वस्तु को देखी जाती है ,उसे प्रकाशिक यंत्र कहते है।

यह दो प्रकार के होते है।

i. प्राकृतिक प्रकाशिक यंत्र (Natural Optical Instrument)

ii. कृत्रिम प्रकाशिक यंत्र (Artifical Optical Instrument)

i. प्राकृतिक प्रकाशिक यंत्र :-वैसा प्रकाशिय यंत्र जो प्राकृत से बना है ,प्राकृतिक प्रकाशिक यंत्र कहलाता है।

जैसे :-आँख

ii. कृत्रिम प्रकाशिक यंत्र :-वैसा प्रकाशीय यंत्र जो मानव के सहारे बनाया गया हो,कृत्रिम प्रकाशिक यंत्र कहलाता है।

जैसे :-सूक्ष्मदर्शी ,दूरदर्शी

*मानव नेत्र (Human Eye) :-शरीर का वह भाग जिसके सहारे प्रकाश की उपस्थिति में किसी वस्तु को देखी जाती है ,उसे मानव नेत्र कहते है।

आँख एक यंत्र है,यह Light Energy को Electric Energy में बदलता है।

हमारी आँख के निम्नलिखित भाग होते है :-

i. दृंढ पटल (Sclera):-आँख के सबसे बाहर का वह भाग जो सफ़ेद होता है ,उसे दृंढ पटल कहते है।

यह सिलिका का बना होता है,तथा यह बाहरी प्रकाश को अंदर नहीं जाने देता है।

ii. चक्षु पटल (Cornea):-आँख के बाहर का वह भाग जो हल्की उभरी होती है ,उसे चक्षु पटल कहते है।

यह पारदर्शी होता है।

नेत्र दान में कॉर्निया का ही दान दिया जाता है।

iii. परितालिका (Iris):-आँख का वह भाग जो कॉर्निया तथा नेत्र लेंस के बीच स्थित होता है,उसे आइरिस कहते है।

इसका रंग काला ,नीला या भूरा होता है।

आँख का रंग आइरिस पर निर्भर करता है।

आँख में प्रवेश करने वाली प्रकाश का नियंत्रण आइरिस करता है।

iv. नेत्र द्वार (Pupil):-आइरिस के बीच एक छोटा-सा छिद्र होता है,जिससे प्रकाश अंदर प्रवेश करती है ,उसे नेत्र द्वार कहते है।

इसका आकार प्रकाश पर निर्भर करता है।

v. जलीय द्रव (Aqueous Humour):-कॉर्निया और नेत्र लेंस के बीच एक liquid होता है,उसे जलीय द्रव कहते है।

इसक अपवर्तनांक 1.336 होता है।

vi. मांसपेशियां (Cliary Muscles):-आँख का वह भाग जिस पर नेत्र लेंस टंगा हुआ होता है,उसे मांसपेशियां कहते है।

इसका मुख्य कार्य नेत्र लेंस की फोकस दुरी को घटाना या बढ़ाना होता है।

इस घटना को समंजन क्षमता कहते है।

vii. नेत्र लेंस (Eye Lens):-आँख का वह भाग जो किसी वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना पर फोकस करता है,उसे नेत्र लेंस कहते है।

आँख में उत्तल लेंस होता है।

इसका अपवर्तनांक 1.446 होता है।

viii. कचाभ द्रव (Vitreous Humour):-वह द्रव जो नेत्र लेंस तथा रेटिना के बीच होता है,उसे कचाभ द्रव कहते है।

ix. कोराईड (Choroid):-आँख का वह भाग जो रेटिना और श्वेत पटल के बीच स्थित होता है,उसे कोराईड कहते है।

x. रेटिना (Retina):-आँख का वह भाग जिस पर किसी वस्तु का प्रतिबिम्ब बनता है,उसे रेटिना कहते है।

रेटिना पर बना प्रतिबिम्ब उल्टा ,वस्तविक और वस्तु से छोटा होता है।

रेटिना पर बिंदु दो प्रकार के होते है।

i. पीत बिंदु (Yellow Spot)

ii. अंध बिंदु (Blind Spot)

i. पीत बिंदु:-रेटिना का वह भाग जो पीला होता है ,उसे पीत बिंदु कहते है।

जब इस भाग पर प्रकाश पड़ती है,तब हम किसी वस्तु के color देख पाते है।

पीत बिंदु पर दो तंतु होता है।

a. शंकु अकार तंतु

b. छड़ अकार तंतु

 

ii. अंध बिंदु :-रेटिना का वह भाग जंहा से प्रकाश रेटिना से Mind में जाती है ,उसे अंध बिंदु कहते है।

हमारी आँख का पलक प्रति मिनट 20 बार झपकती है।

आँसु, पानी और नमक से बना होता है ,वह आँख को शुष्क होने नहीं देता है।

आँसु में लाइसोजियम नामक एंजाइम पाया जाता है ,इस कारण ही आँख में किट पड़ने पर मर जाता है।

लाइसोजियम एंजाइम का pH मान 7 होता है।

 

*नेत्र की समंजन क्षमता (Power Of Accommedation Of Eye)

नेत्र लेंस की फोकस दुरी को घटने या बढ़ने की घटना को समंजन क्षमता कहते है।

स्पष्ट दृष्टि की अल्पतम दुरी 25cm तथा अधिकतम दुरी अनंत होता है।

निकट बिंदु तथा दूर बिंदु के बीच की दुरी दृष्टि परास (Range Of Vision) कहलाता है।

बिना समंजन क्षमता लगाये स्पष्ट देख सकता है,उसे नेत्र का दूर बिंदु कहते है।

*दृष्टि दोष और उसका निवारण(Defects Of Vision And Their Remdies)

*दृष्टि दोष :-सामान्य नेत्र के लिए कहीं पर स्थित वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनता है,यदि ऐसा नहीं हुआ ,तो उसे दृष्टि दोष कहते है।

दृष्टि दोष चार प्रकार के होते है।

i. निकट दृष्टि दोष (Myopia)

ii. दीर्घ दृष्टि दोष (Hypermetropia)

iii. जरा दृष्टि दोष (Presbyopia)

iv. अबिंदुकता (Astigmayism)

i. निकट दृष्टि दोष :-वैसा दृष्टि दोष जिसमें निकट की वस्तु दिखाई देता है,और दूर की वस्तु दिखाई नहीं देता है।

*निकट दृष्टि दोष के कारण 

i. नेत्र लेंस की फोकस दुरी का कम हो जाना,या नेत्र लेंस का मोटा हो जाना।

ii. नेत्र लेंस तथा रेटिना के बीच की दुरी बढ़ जाना।

*निकट दृष्टि दोष केनिवारण :-निकट दृष्टि दोष को दूर करने के लिए अवतल लेंस का प्रयोग किया जाता है।

*निकट दृष्टि दोष के लिए :-

*यदि x दुरी सेंटीमीटर में हो,तो :-

लेंस की शक्ति (P) = -100 /x डायॉप्टर

ii. दीर्घ दृष्टि दोष :-वैसा दृष्टि दोष जिसमें दूर की वस्तु दिखाई देती है और निकट की वस्तु दिखाई नहीं देती है,दीर्घ दृष्टि दोष कहलाता है।

*दीर्घ दृष्टि दोष के कारण

i. नेत्र लेंस का फोकस दुरी बढ़ जाना ,या नेत्र लेंस पतली हो जाना।

ii. नेत्र लेंस तथा रेटिना के बीच की दुरी कम हो जाना।

*दीर्घ दृष्टि दोष निवारण :-इस दोष को दूर करने के लिए उत्तल लेंस का प्रयोग किया जाता है।

*जरा दृष्टि दोष :-वैसा दृष्टि दोष जिसमें निकट के साथ दूर की भी वस्तु स्पष्ट दिखाई नहीं देती है,उसे जरा दृष्टि दोष कहते है।

*जरा दृष्टि दोष के कारण :-यह दोष वृद्धावस्था में मांसपेशियां का शिथिल हो जाने के कारण होता है।

*जरा दृष्टि दोष के निवारण :-इस दोष को दुर करने के लिए अवतल तथा उत्तल लेंस (द्विफोकसिय लेंस) Bi-Focal Lens का प्रयोग किया जाता है।

 *अबिंदुकता :-वैसा दृष्टि दोष जिसमें ऊध्वार्धर या क्षैतिज में कोई एक ही स्पष्ट दिखाई देती है,उसे अबिंदुकता कहते है।

*अबिंदुकता के कारण :-अबिंदुकता दृष्टि दोष होने का मुख्य कारण कॉर्निया के त्रिज्या बदल जाना होता है।

*अबिंदुकता के उपचार :-अबिंदुकता दृष्टि दोष को दूर करने के लिए बेलनाकार लेंस का प्रयोग चश्में के रूप में किया जाता है।

*दर्शन कोण (Visual Angles):-वस्तु के ऊपरी बिंदु तथा निचली बिंदु के साथ आँख पर जो कोण बनता है,उसे दर्शन कोण कहते है।

इसे द्वारा सूचित किया जाता है।

दर्शन कोण का मान दो कारक पर निर्भर करता है।

i. वस्तु के आकार पर :-वस्तु के आकार बढ़ने पर दर्शन कोण का मान बढ़ जाता है ,लेकिन आँख और वस्तु के बीच दुरी में परिवर्तन न हो ,

ii. वस्तु तथा आँख के बीच दुरी पर :-दुरी बढ़ाने पर दर्शन कोण का मान घट जाता है,यदि वस्तु के आकार न बदलें।

*आवर्धन क्षमता या कोणीय आवर्धन (Magnification Power)

यंत्र के सहारे प्रतिबिम्ब द्वारा आँख पर बना कोण (β) तथा बिना यंत्र के सहारे वस्तु द्वारा आँख पर बना कोण () के अनुपात को आवर्धन क्षमता कहते है।

इसे m द्वारा सूचित किया जाता है।

m = β/

*आवर्धन और आवर्धन क्षमता में अन्तर :-

आवर्धन

i. यह रेखीय आवर्धन है।

ii. प्रतिबिम्ब की ऊंचाई तथा वस्तु की ऊंचाई के अनुपात आवर्धन कहलाता है ,

iii. m = h2/h1

iv. इसमें v का मान बढ़ाने पर बढ़ता है।

v. इसका मान 1 और के बीच हो सकता है।

आवर्धन क्षमता

i. यह कोणीय आवर्धन है।

ii. प्रतिबिम्ब के सहारे आँख पर बना कोण तथा वस्तु के सहारे आँख पर बना कोण के अनुपात आवर्धन क्षमता कहलाता है।

iii. m =β/

iv. इसमें v का मान बढ़ाने पर घटता है।

v. इसका मान (1 + D/fe) तथा  D/fe के बीच हो सकता है।

*कृत्रिम प्रकाशीय यंत्र :-वैसा प्रकाशीय यंत्र जो मानव के सहारे बनाया जाता है ,उसे कृत्रिम प्रकाशीय यंत्र कहते है।

यह मुख्यतः दो प्रकार के होते है।

i. सूक्ष्मदर्शी (Microscope)

ii. दूरदर्शी (Telescope)

i. सूक्ष्मदर्शी :-वैसा प्रकाशीय यंत्र जिसके सहारे छोटी वस्तु को देखी जाती है,उसे सूक्ष्मदर्शी कहते है।

सूक्ष्मदर्शी मुख्यतः दो प्रकार के होते है।

i. सरल सूक्ष्मदर्शी (Simple Microscope)

ii. संयुक्त सूक्ष्मदर्शी (Compound Microscope)

i. सरल सूक्ष्मदर्शी :-वैसा प्रकाशीय यंत्र जिसके यंत्र जिसके सहारे छोटी-छोटी वस्तुओं को देखी जाती है,उसे सरल सूक्ष्मदर्शी कहते है।

*बनावट :- सरल सूक्ष्मदर्शी बनाने के लिए कम फोकस दुरी वाले उत्तल लेंस का प्रयोग किया जाता है। इस लेंस को एक फ्रेम के सहारे कस  दी जाती है ,तथा इसमें एक हैंडल लगा होता है ,जिसके सहारे ही लेंस को ऊपर निचे कर वस्तु को स्पष्ट देखी जाती है।

*क्रियाविधि :-उत्तल लेंस के प्रकाशीय केंद्र तथा फोकस के बिच AB एक छोटी वस्तु रखी जाती है ,इसका प्रतिबिम्ब अपवर्तन के कारण वस्तु के पीछे वस्तु से बड़ा ,सीधा तथा काल्पनिक प्राप्त होता है। और यह प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दुरी पर बनता है ,इस प्रतिबिम्ब को देख कर ही वस्तु का अनुभव किया जाता है।

*सरल सूक्ष्मदर्शी का आवर्धन क्षमता:-

(A)जब अंतिम प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दुरी पर बनता ही ,या महत्तम आवर्धन क्षमता के लिए:-

(B)जब अंतिम प्रतिबिम्ब अनंत पर प्राप्त होता है।

(C)जब लेंस से आँख के a दुरी पर राखी जाती है,

*सरल सूक्ष्मदर्शी का उपयोग :-

i. पंडितों द्वारा हस्त रेखा देखने में।

ii. अमिन द्वारा जमीन की मापी में

iii. छोटे-छोटे अक्षरों को पढ़ने में

iv. किसी कागज पर लगाए गए थम की जाँच में

*संयुक्त सूक्ष्मदर्शी :-वैसा सूक्ष्मदर्शी जिसके सहारे बहुत छोटी-छोटी वस्तुओं को देखी जाती है,उसे संयुक्त सूक्ष्मदर्शी कहते है।

*बनावट :-संयुक्त सूक्ष्मदर्शी बनाने के लिए दो उत्तल लेंस का प्रयोग किया जाता है ,पहली नली के पहली सिरा पर कम फोकस दुरी वाले एक उत्तल लेंस कस दी जाती है,तथा दूसरी नली की दूसरी शिरा पर अधिक फोकस दुरी वाले उत्तल लेंस कस दी जाती है ,दोनों नली को इस प्रकार व्यवस्थित की जाती है की इसकी बीच की दुरी आसानी पूर्वक घटाई या बढाई जा सके।

जिस लेंस की तरफ आँख रखी जाती है,उसे नेत्रिका लेंस तथा जिस लेंस की तरफ वस्तु रखी जाती है,उसे अभिदृश्यक लेंस कहते है।

अभिदृश्यक की फोकस नेत्रिका से छोटी होती है।

*क्रियाविधि

:-माना की L1 लेंस के आगे F और 2F के बीच में AB एक वस्तु रखी जाती है,इसका प्रतिबिम्ब अपवर्तन के कारण अनंत और 2f  के बीच में वस्तु से बड़ा ,उल्टा तथा वास्तविक प्राप्त होता है। L2 लेंस को इस प्रकार व्यवस्थित की जाती है की L1 लेंस के सहारे बना प्रतिबिम्ब L2 लेंस के प्रकाशीय केंद्र और फोकस के बीच में हो ,अतः इस प्रकार L2 लेंस द्वारा बना अंतिम प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि के न्यूनतम दुरी पर वस्तु से बड़ा ,सीधा तथा काल्पनिक पप्राप्त होता है,लेकिन प्रारंभिक वस्तु की तुलना में बना प्रतिबिम्ब उल्टा तथा काल्पनिक होता है।

*संयुक्त सूक्ष्मदर्शी का आवर्धन क्षमता (Magnification Power Of Compound Microscope)

Case-I

जब अंतिम प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि के न्यूनतम दुरी पर बनती है,या महत्तम आवर्धन क्षमता के लिए :-

*यदि नली की लम्बाई L हो,तो

*जब अंतिम प्रतिबिम्ब अनंत पर प्राप्त होता है,या Normal Eye के लिए आवर्धन क्षमता :-

*यदि नली की लम्बाई L हो,

*दूरबीन (Telescope)

*खगोलीय दूरबीन (Astronomical Telescope)

वैसा प्रकाशीय यंत्र जिसके सहारे खगोल के वस्तु को देखी जाती है ,उसे खगोलीय दूरबीन कहते है।

*बनावट :-खगोलीय दूरबीन बनाने के लिए दो उत्तल लेंस तथा दो नली का प्रयोग किया जाता है ,पहली नली की पहली शिरा पर अधिक फोकस दुरी वाले उत्तल लेंस कस दी जाती है ,तथा दूसरी नली की दूसरी  शिरा पर कम फोकस दुरी वाले उत्तल लेंस कस दी जाती है ,दोनों नली को इस प्रकार व्यवस्थित कर दी जाती है,की इसके बीच के दुरी आसानी पूर्वक घटाई और बढ़ाई जा सके।

जिस लेंस की तरफ आँख राखी जाती है,उसे नेत्रिका लेंस तथा जिस लेंस के तरफ वस्तु रखी जाती है उसे अभिदृश्यक लेंस कहते है।

अभिदृश्यक लेंस की फोकस दुरी नेत्रिका लेंस से अधिक होती है।

*क्रियाविधि :-L1 लेंस के आगे अनंत पर AB एक वस्तु रखी जाती है ,इसका प्रतिबिम्ब अपवर्तन के कारण L1 लेंस के फोकस पर वस्तु से छोटा ,उल्टा तथा वास्तविक प्राप्त होता है ,L2 लेंस के सहारे बना प्रतिबिम्ब L2 लेंस के प्रकाशीय केंद्र और फोकस के बीच में हो ,अतः इस प्रकार L2 लेंस द्वारा बना अंतिम प्रतिबिम्ब स्पस्ट दृष्टि की न्यूनतम दुरी पर वस्तु से बड़ा ,सीधा तथा काल्पनिक प्राप्त होता है ,लेकिन प्रारम्भिक वस्तु की तुलना में वस्तु से छोटा ,उल्टा तथा काल्पनिक प्राप्त होता ही।

*आवर्धन क्षमता

*जब अंतिम प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दुरी पर बनती है -

*जब अंतिम प्रतिबिम्ब अनंत पर बनता है ,तो

Ue  = fe

*अपवर्तक दूरबीन का दोष :-

i. इसमें अभिदृश्यक लेंस का आकार बड़ा रखना पड़ता है। इस कारण इसे बनाना बहुत कठिन है।

ii. बड़ा होने के कारण यह महगां होता है।

iii. बड़े आकार होने के कारण इसे सेट करना कठिन होता है।

iv. बड़े और मोटा लेंस होने के कारण सभी की फोकस एक बिंदु पर नहीं मिल पाती है।

v. सभी विकिरण के तरंगधैर्य अलग-अलग होने के कारण एक फोकस नहीं बन पाता है।

*न्यूटन का परावर्तक दूरबीन

वैसा दूरबीन जिसके सहारे दूर की वस्तु को देखी जाती है ,साथ ही प्रकाश का परावर्तन के सिद्धांत पर कार्य करता है,उसे न्यूटन का परावर्तक दूरबीन कहते है।

*बनावट :-न्यूटन के परावर्तक दूरबीन बनाने के लिए एक बड़े द्वारक के अवतल दर्पण का प्रयोग किया जाता है ,इसके फोकस से कुछ पहले एक समतल दर्पण लगा होता है ,जो मुख्य अक्ष के साथ 45˙ का कोण बनाता है ,तथा इसके निचे एक नली की पहली शिरा पर एक छोटा सा उत्तल लेंस लगा होता है। इसे नेत्रिका लेंस कहते है।

*क्रियाविधि :-अवतल दर्पण के आगे AB एक वस्तु है ,जिसका प्रतिबिम्ब दर्पण से परावर्तन के कारण फोकस पर बनता है ,लेकिन समतल दर्पण होने के कारण इसका प्रतिबिम्ब मुख्य अक्ष के निचे प्राप्त हो जाता है ,लेंस को इस प्रकार व्यवस्थित की जाती है की दर्पण द्वारा बना प्रतिबिम्ब लेंस के प्रकाशीय केंद्र तथा फोकस के बीच में हो ,

अतः इस प्रकार लेंस द्वारा बना अंतिम प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दुरी पर वस्तु से बड़ा ,सीधा तथा काल्पनिक प्राप्त होता है।


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