रासायनिक गतिकी (chemical kinetics)

 Bihar Board Class 12th Chemistry Notes In Hindi

रासायनिक गतिकी (chemical kinetics)

भौतिक रासायन की वह शाखा जिसके अंतर्गत किसी अभिक्रिया का वेग एवं उसके वेग को प्रभावित करने वाले कारकों के बारे में अध्यन किया जाता है,रासायनिक गतिकी कहलाता है।

                 प्राकृति में कुछ अभिक्रियाएं ऐसे होते है जो अत्यंत तीव्र गति से होते है।

जैसे :- जब बेरियम क्लोराइड को सल्फ्यूरिक अम्ल में डाला जाता है तो वह अत्यंत तीव्र गति से अभिक्रिया करके बेरियम सल्फेट का गाढ़ा अवक्षेप बना लेता है। अतः ऐसे अभिक्रिया का वेग आसानी से ज्ञात नहीं किया जा सकता है।

BaCl2 + H2SO4 → BaSO4↓ + HCl (Very Fast)

तथा कुछ अभिक्रियाएं ऐसे होते है जो अत्यंत मंद गति से पुरे होते है ,अतः इनका भी वेग आसानी से ज्ञात नहीं किया जा सकता है।

जैसे :- लोहे में जंग लगना ,सिर्फ इसी अभिक्रिया का वेग आसानी से ज्ञात किया जा सकता है जो मृदुल गति से पूरे होते है।

किसी रासायनिक अभिक्रिया में अभिकारक का सांद्रण हमेशा घटता है जबकि प्रतिफल का सांद्रण बढ़ता है।

*अभिक्रिया का वेग

किसी रासायनिक अभिक्रिया में अभिकारक या प्रतिफल के सांद्रण में परिवर्तन जो समय के साथ होता है ,उसे उस अभिक्रिया का वेग कहा जाता है।

अभिक्रिया का वेग का मात्रक mol /lit / second होता है।

अभिक्रिया का वेग = सांद्रण में परिवर्तन / समय

अभिक्रिया का वेग मुख्यतः दो प्रकार का होता है।

i. औसत वेग :-किसी निश्चित समय अंतराल में अभिक्रिया के अभिकारक या प्रतिफल के सांद्रण में परिवर्तन की दर को उसका औसत वेग कहा जाता है।

औसत वेग =सांद्रण में परिवर्तन /समय

ii. ताक्षणिक वेग :-किसी समय अभिक्रिया के अभिकारक या प्रतिफल के सांद्रण में परिवर्तन की दर को उसका ताक्षणिक वेग कहा जाता है।

ताक्षणिक वेग =∆c /∆t

*वेग व्यंजक

किसी रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेने वाले अभिकारक एवं प्रतिफल को जब वेग के रूप में व्यक्त किया जाता है तो,उसे अभिक्रिया का वग व्यंजक कहा जाता है।

जैसे :- 

*वेग समीकरण

जब किसी रासायनिक अभिक्रिया के वेग को अभिकारक के सांद्रण के रूप में व्यक्त किया जाता है तो उसे उस अभिक्रिया का वेग समीकरण कहा जाता है।

जैसे :-  अभिक्रिया A + B → C + D के लिए

वेग समीकरण = K[A] [B]

2A + B → C + D के लिए

वेग समीकरण = K[A]2 [B]

किसी भी रासायनिक अभिक्रिया का वेग उस अभिक्रिया में उपस्थित अभिकारक के सक्रिय द्रव्यमान पर निर्भर करता है।

वेग समीकरण एक प्रयोगिक राशि है जो अभिक्रिया को देख कर ज्ञात नहीं किया जाता है ,बल्कि इसका मान प्रयोग के द्वारा ज्ञात किया जाता है।

यदि कोई रासायनिक अभिक्रिया दो या दो से अधिक चरणों में पूरी होती है तो उस अभिक्रिया का वेग समीकरण मंद गति वाले चरण के द्वारा ज्ञात किया जाता है।

जैसे :-  अभिक्रिया  2N2O → 2N2 + O2 के लिए

वेग स्थिरांक (k) की विशेषताएँ :-

i. निश्चित ताप पर किसी रासायनिक अभिक्रिया के लिए 'k' का सिर्फ एक मान संभव होता है।

ii. ताप का मान बदल देने से उसी अभिक्रिया के लिए 'k' का मान भी बदल जाता है।

iii. k का मान ताप पर निर्भर करता है।

iv. किसी अभिक्रिया के लिए k का मान जितना अधिक होता होता है ,वह अभिक्रिया उतने ही तेजी से होता है।

अभिक्रिया के वेग को प्रभावित करने वाले कारक :-

i. सांद्रण :-किसी रासायनिक अभिक्रिया का वेग अभिकारक के सांद्रण पर निर्भर करता है ,अर्थात सांद्रण का मान बदल देने से अभिक्रिया का वेग भी बदल जाता ही।

ii. ताप :-कुछ अभिक्रियाएँ ऐसे होते है जो ऊष्माशोषी होते है। अतः इन अभिक्रिया का ताप बढ़ा दिया जाए तो इसका वेग का मान भी बढ़ जाता है। आरहेर्नियास ने प्रयोग के द्वारा यह पाया की यदि किसी अभिक्रिया का ताप 10˙C से बढ़ा दिया जाए तो उस अभिक्रिया का वेग दुगुना हो जाता है।

iii. पदार्थ की अवस्था :-किसी अभिक्रिया को कराते समय यदि कोई पदार्थ ठोस के बड़े आकार के रूप में हो तो अभिक्रिया मंद गति से पूरी होती है ,किन्तु उसे महीन चूर्ण के रूप में बदल देने पर उसका पृष्ठीय क्षेत्रफल बढ़ जाता है जिससे अभिक्रिया का वेग भी बढ़ जाता है।

iv. उत्प्रेरक :-वैसा पदार्थ जो रासायनिक अभिक्रिया में भाग लिए बिना ही अभिक्रिया के वेग को प्रभावित कर देता है ,उत्प्रेरक कहलाता है।

कुछ अभिक्रियाएँ ऐसे होते है जिसमें उत्प्रेरक की कुछ मात्रा मिला देने पर अभिक्रिया का वेग अचानक बढ़ जाता है। क्योकि यह अभिक्रिया में संक्रियन ऊर्जा को घटा देता है।

v. विकरण का प्रभाव :-कुछ अभिक्रियाएँ ऐसे है जो अँधेरे में पूरा नहीं होते है। अतः ऐसे अभिक्रिय को पूरा करने के लिए सूर्य के प्रकाश के उपस्थिति में रखा जाता है जिससे उनके बिच का बंधन आसानी से टूट जाता है और अभिक्रिया का वेग बढ़ जाता है।

*संक्रियण ऊर्जा (Activation Energy) :-किसी रासायनिक अभिक्रिया में अभिकारक को मध्यवर्ती में बदलने के लिए जिस न्यूनतम ऊर्जा की आवश्यकता होती है,उसे संक्रियण ऊर्जा कहा जाता है।

या,

किसी रासायनिक अभिक्रिया में अभिकारकों के बीच के बंधन को तोड़ने के लिए जिस न्यूनतम ऊर्जा की आवश्यकता होती है,उसे संक्रियण ऊर्जा कहा जाता है।

*देहली ऊर्जा (Thresold Energy):-ऊर्जा के जिस मान पर अभिकारक मध्यवर्ती में बदल जाता है,उसे देहली ऊर्जा कहा जाता है।

*अभिक्रिया की कोटि (Order Of Reaction)

वेग समीकरण में भाग लेने वाले अभिकारकों सांद्रणों के घातांको के योगफल के अभिक्रिया की कोटि कहा जाता है। यह प्रयोगिक राशि के द्वारा ज्ञात किया जाता है।

किसी अभिक्रिया की कोटि ऋणात्मक ,धनात्मक ,शून्य ,तथा भिन्नात्मक संख्या भी हो सकता है।

जैसे :-  अभिक्रिया A + B → C + D के लिए वेग समीकरण

वेग = K [A] [B]0

कोटि = 1 + 0 = 1

*अभिक्रिया की अणुकता (Molecularity Of Reaction)

किसी संतुलित रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेने वाले अभिकारकों के अणुओं की न्यूनतम संख्या को उस अभिक्रिया की अणुकता कहा जाता है।

जैसे :- 

अभिक्रिया H2 + Cl2 → 2HCl  के लिए

अणुकता = 1+1 = 2

यह एक सैद्धांतिक राशि है जिसका मान वेग समीकरण को देखकर नहीं बल्कि अभिक्रिया को देखकर ज्ञात किया जाता है।

*वेग स्थिरांक 'K' का मात्रक

इसी प्रकार 11वें कोटि अभिक्रिया के लिए वेग स्थिरांक K का मात्रक  = mol-10 lit10 Sec-1

nवें कोटि अभिक्रिया के लिए वेग स्थिरांक K का मात्रक = mol-(n-1) lit(n-1) Sec-1

*अभिक्रिया का अर्द्धआयु काल (Half Life Period Of Reaction)

किसी रासायनिक अभिक्रिया में अभिकारक के सांद्रण को आधा होने में जितना समय लगता है उसे उस अभिक्रिया का अर्द्धआयु काल कहा जाता है।

इसे T1/2 के द्वारा सूचित किया जाता है।

*शून्य कोटि अभिक्रिया (Zero Order Reaction)

वैसी रासायनिक अभिक्रिया जिसमें अभिक्रिया का वेग अभिकारक के सांद्रण पर निर्भर नहीं करता है ,शून्य कोटि अभिक्रिया कहलाता है।

जैसे :- 

शून्य कोटि अभिक्रिया के लिए वेग स्थिरांक का व्यंजक :-

शून्य कोटि अभिक्रिया का अर्द्धआयु काल

*प्रथम कोटि अभिक्रिया (First Order Reaction )

वैसी रासायनिक अभिक्रिया जिसमें अभिक्रिया का वेग अभिकारक के सांद्रण का सीधा समानुपाती होता है,प्रथम कोटि अभिक्रिया कहलाता है।

जैसे :-  H2O2 → H2O + O2

             2N2O → 2 N2 + O2

प्रथम कोटि अभिक्रिया का वेग स्थिरांक का व्यंजक

x =a रखने पर t का मान Infinitive हो जाता है ,जिससे स्पष्ट है की प्रथम कोटि अभिक्रिया कभी 100% पूरा नहीं होता है।

प्रथम कोटि अभिक्रिया का अर्द्धआयु काल

Note :-प्रथम कोटि अभिक्रिया का अर्द्धआयु काल अभिकारक के प्रारंभिक सांद्रण पर निर्भर नहीं करता है।

*छद्दम प्रथम कोटि अभिक्रिया (Pseudo First Order Reaction)

वैसी रासायनिक अभिक्रिया जिसमें अभिकारकों की संख्या दो होती है ,किन्तु एक की तुलना में दूसरे अभिकारक का सांद्रण बहुत अधिक होने के कारण अभिक्रिया का वेग सिर्फ एक ही अभिकारक पर निर्भर करता है ,छद्दम प्रथम कोटि अभिक्रिया कहलाता है।

जैसे :- जब इथाइल एसिटेट को जल अपघटन कराया जाता है तो इसमें जल की मात्रा इथाइल एसिटेट की तुलना में बहुत अधिक होने के कारण अभिक्रिया का वेग सिर्फ इथाइल एसिटेट पर ही निर्भर करता है। अतः इसे छद्दम प्रथम कोटि अभिक्रिया कहा जाता है।

*टक्कर का सिद्धांत (Collision Theory)

जब किसी रासायनिक अभिक्रिया में अभिकारक को मिलाया जाता है तो अभिकारक के अणु एक-दूसरे से टकराने लगते है ,जिसके कारण इनकी गति ऊर्जा बढ़ती चली जाती है तथा कुछ समय बाद अणुओं के बीच टक्कर प्रभावी हो जाता है तो उनके बीच का बंधन टूट जाता है तथा अभिकारक मध्यवर्ती में बदल जाता है।

अभिकारक के अणुओं में उसी अणु का बंधन टूटता है जिसका टक्कर प्रभावी होता है। तथा शेष अणु भी धीरे-धीरे प्रभावी टक्कर करने लगते है जिससे अभिक्रिया होने में कुछ समय लग जाता है।

आरहेनियस ने यह पाया की यदि किसी अभिक्रिया का तापमान बढ़ा दिया जाए तो उसकी प्रभावी टक्करों की संख्या भी बढ़ जाती है। जिससे अभिकारक तेजी से प्रतिफल में बदलने लगता है। उन्होंने इसके लिए एक समीकरण का भी प्रतिपादन किया जिसे,आरहेनियस का समीकरण कहा जाता है।

जो निम्नलिखित है :-

 dlnk/dT = Ea/RT2

इस समीकरण को ही आरहेनियस का समीकरण कहा जाता है।


Class12th Chemistry Notes In Hindi,Bihar Board 12th Notes In Hindi,12th chemistry notes in hindi,biharboard 12th notes in hindi,chemical kinetics notes in hindi

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ