वैधुत रसायन (Electro Chemistry)

 12th Chemistry Notes In Hindi

वैधुत रसायन (Electro Chemistry)

*वैधुत अपघट(Electrolyte):-वैसा पदार्थ जो द्रवित अवस्था में या जलीय विलयन के रूप में विधुत का सुचालक होता है ,वैधुत अपघट कहलाता है।

जैसे :-NaCl,H2So4,KCl

*वैधुत अनअपघट (Non-Electro Chemistry):-वैसा पदार्थ जिसका द्रवित अवस्था या जलीय विलयन विधुत का कुचालक होता है ,उसे वैधुत अनअपघट कहा जाता है।

जैसे :-मीथेन ,अमोनिया ,सुक्रोज

*प्रबल वैधुत अपघट(Strong Electrolyte):-वैसा वैधुत अपघट जिसका जलीय विलयन पूर्णतः आयनित हो जाता है,प्रबल वैधुत अपघट कहलाता है।

जैसे :-HCl,NaCl,KCl,H2So4

*दुर्बल वैधुत अपघट(Weak Electrolyte):- वैसा वैधुत अपघट जिसका जलीय विलयन अंशतः आयनित होता है ,दुर्बल वैधुत अपघट कहलाता है।

जैसे :-HCOOH,CH3COOH

*वैधुत अपघटनी सेल (Electrolyte Cell):-वैसा सेल जिसमें विधुत धारा प्रवाहित करके रसायनिक अभिक्रिया कराई जाती है ,उसे वैधुत अपघटनी सेल कहा जाता है।                        तथा वैधुत अपघटनी सेल में जिस पदार्थ को अपघटन कराया जाता है उस प्रक्रिया को वैधुत अपघटन कहा जाता है।

वैधुत अपघटन की क्रिया में एक बर्तन में किसी वैधुत अपघटय को द्रवित अवस्था में रखकर उसमें दो इलेक्ट्रोड डूबा दिया जाता है ,जो इलेक्ट्रोड बैट्री के धनायन से जुड़ा होता है ,उसे एनोड कहा जाता है। जबकि ऋणायन से जुड़े हुए इलेक्ट्रोड को कैथोड कहा जाता है। इन दोनों इलेक्ट्रोडों को परिपथ से जोड़कर जब इसमें विधुत धारा प्रवाहित की जाती है तो यह धनायन एवं ऋणायन में अपघटित हो जाता है जिसके कारण धातु कैथोड पर तथा अधातु एनोड पर जमा होने लगता है।

जब NaCl के विलयन से होकर विधुत धारा प्रवाहित की जाती है तो कैथोड पर Na धातु मुक्त होता है। जबकि NaCl के जलीय विलयन से होकर जब विधुत धारा प्रवाहित की जाती है तो कैथोड पर 'H' गैस मुक्त होता है ,क्योकि H का मानक इलेक्ट्रोड विभव Na से अधिक होता है।

*फैराडे का नियम(faraday's Law)

वैधुत अपघटन से संबंधि सन 1832 में माइकल फैराडे नामक वैज्ञानिक ने दो नियमों का प्रतिपादन किया जिसे फैराडे का नियम कहा जाता है।

1. फैराडे का पहला नियम

फैराडे के पहले नियम के अनुसार किसी वैधुत अपघटनी सेल में किसी भी इलेक्ट्रोड पर जमा होने वाली पदार्थ की मात्रा उसमें प्रवाहित होने वाले विधुत धारा का सीधा समानुपाति होता है।

यदि किसी सेल में C की विधुत धारा t समय के लिए प्रवाहित किया जाता है तो उस पदार्थ m ग्राम इलेक्ट्रोड पर जमा हो जाता है,तो फैराडे के पहले नियम के अनुसार ,

m c  → (1)

m ∝ t → (1)

समी 1 और 2 से

m ∝ ct

जहाँ Z एक नियतांक है जिसे विधुत रासायनिक तुल्यांक कहा जाता है।

2. फैराडे का दूसरा नियम

फैराडे के दूसरे नियम के अनुसार यदि दो या दो से अधिक वैधुत अपघटनी सेलों को श्रेणीक्रम में जोड़कर समान विधुत धारा समान समय के लिए प्रवाहित किया जाए तो प्रत्येक इलेक्ट्रोड पर जमा होने वाली पदार्थ की मात्रा उसके तुल्यांकी भार का सीधा समानुपाती होता है।

यदि दो इलेक्ट्रोड जिनके तुल्यांकी भार क्रमशः E1 तथा E2 है। इन्हे श्रेणीक्रम में जोड़कर समान विधुत धारा समान समय के लिए दी जाती है तो पहले इलेक्ट्रोड पर x gm तथा दूसरे पर y gm जमा होता है तो फैराडे का दूसरे नियम से ,

x/y = E1/E2

माइकल फैराडे के अनुसार किसी भी पदार्थ के एक तुल्यांक को इलेक्ट्रोड पर जमा होने में लगभग 96500C आवेश की आवश्यकता होती है। अतः इसे 1 फैराडे भी कहा जाता है।

*विधुत रासायनिक तुल्यांक (Electro Chemicle Eqavalent)

जब एक एम्पियर की विधुत धारा एक सेकेंड तक किसी वैधुत अपघटनी सेल से प्रवाहित किया जाए तो इलेक्ट्रोड पर जमा होने वाली पदार्थ की मात्रा को विधुत रासायनिक तुल्यांक कहा जाता है।

*विलयन का चालकत्व(Conductivity Of Solution)

किसी विलयन का प्रतिरोध उस विलयन में उपस्थित दोनों प्लेटों के बीच की दुरी तथा प्लेटों के बीच उपस्थित विलयन के क्षेत्र पर निर्भर करता है।

अर्थात,किसी विलयन का प्रतिरोध दोनों प्लेटों के बीच की दुरी का सीधा समानुपाती होता है तथा प्लेटों के बिच उपस्थित विलयन के क्षेत्रफल का व्युत्क्रमानुपाती होता है।

R ∝ l → (1)

R ∝ 1/A → (2)

समी 1 तथा 2 से ,

P ∝ l/A

R = ∫. l/A

जहाँ ∫ (रो) एक नियतांक है। जिसे विलयन की प्रतिरोधकता कहा जाता है। जिसका मान विलयन की प्रकृति पर निर्भर करता है। जिस विलयन के प्रतिरोधकता का मान जितना अधिक होता है ,उसके चालकत्व का मान उतना ही कम होता है। अर्थात किसी विलयन का चालकत्व उसके प्रतिरोधकता का व्युत्क्रमानुपाती होती है।

*चालकत्व /चालकता (Conductivity / Conductance)

किसी वैधुत अपघट विलयन के प्रतिरोधकता के व्युत्क्रम को चालकत्व कहा जाता है।

चालकत्व मुख्य तीन प्रकार के होता है :-

i. विशिष्ट चालकत्व (Specific Conductivity)

ii. मोलर चालकत्व (Molar Conductivity)

iii. तुल्यांकी चालकत्व (Equivalent Conductivity)

i. विशिष्ट चालकत्व:-किसी वैधुत अपघट विलयन के प्रतिरोधकता के व्युत्क्रम को विशिष्ट चालकत्व कहा जाता है।

या,किसी वैधुत अपघट विलयन के एक ml चालकत्व को विशिष्ट चालकत्वकहा जाता है।

इसे K (kappa) के द्वारा सूचित किया जाता है।

K = 1/   (∫ = R.A/l)

K = 1/R.A/l

K = l/R.A

विशिष्ट चालकत्व का मात्रक ohm-1 cm-1 होता है।

ii. मोलर चालकत्व :-किसी वैधुत अपघटय विलयन के 1 मोल के चालकत्व को मोलर चालकत्व कहा जाता है।

इसे 'μ' के द्वारा सूचित किया जाता है।

मोलर चालकत्व का मात्रक ohm-1 cm2 mol-1 होता है।

iii. तुल्यांकी चालकत्व:-किसी वैधुत अपघटय विलयन के 1 तुल्यांक के चालकत्व को तुल्यांकी चालकत्व कहा जाता है।

इसे 'λ' से सूचित किया जाता है।

तुल्यांकी चालकत्व का मात्रक ohm-1 cm2 eq-1 होता है।

Note:-जब किसी वैधुत अपघटय विलयन को तनु बनाया जाता है तो उसके मोलर और तुल्यांकी चालकत्व का मान बढ़ जाता है ,जबकि विशिष्ट चालकत्व  का मान घट जाता है।

क्योकि,विलयन को तनु बनाने से उसकी आयनों की संख्या बढ़ती जाती है। किन्तु प्रति ml विलयन में आयनों की संख्या कम हो जाती है।

*कॉलरॉश का नियम (Callross's Of Law)

कॉलरॉश के नियामनुसार अनंत तनुता पर किसी वैधुत अपघटय विलयन का तुल्यांकी चालकत्व उस विलयन में उपस्थित धनआयनो एवं ऋणायणों के तुल्यांकी चालकत्वो के योगफल के बराबर होता है।

*सेल स्थिरांक (Cell Constant)

किसी भी सेल के दोनों प्लेटों के बीच की दुरी तथा प्लेटों बीच उपस्थित विलयन के क्षेत्रफल के अनुपात को सेल स्थिरांक कहा जाता है।

इसे 'x' के द्वारा सूचित किया जाता है।

x =l / A

सेल स्थिरांक का मात्रक cm-1 होता है

*विधुत रासायनिक सेल (Electro Chemical Cell)

वैसा सेल जिससे रासायनिक अभिक्रिया कराकर विधुत ऊर्जा प्राप्त की जाती है,उसे विधुत रासायनिक सेल कहा जाता है।

विधुत रासायनिक सेल में दो बर्तन होता है ,जिसमें एक बर्तन में (ZnSo4) जिंक सल्फेट का विलयन तथा दूसरे बर्तन में कॉपर सल्फेट का विलयन लिया जाता है। इन दोनों विलयनों की सांद्रता 1mol /lit होती है तथा ZnSo4 के विलयन में Zn का छड़ तथा CuSo4 के विलयन में Cu का छड़ डूबा कर दोनों विलयनों को लवण सेतु से जोड़ दिया जाता है। लवण सेतु पोटैसियम नाइट्रेट या पोटैसियम क्लोराइड का एक गाढ़ा विलयन होता है जो दोनों विलयनों के बीच विधुत संपर्क कायम करता है ,परन्तु दोनों विलयनों को मिश्रित होने से बचाता है। उसके बाद Zn के परमाणु इलेक्ट्रॉन को त्याग करके विलयन की तरफ आने लगता है , जिसे Zn का इलेक्ट्रोड ऋणआवेशित हो जाता है। जबकि Cu में इलेक्टॉन ग्रहण करने की क्षमता Zn से अधिक होती है। अतः यह विलयन से इलेक्ट्रोड की तरफ जाने लगता है,जिसके कारण Cu का इलेक्ट्रोड धनावेशित हो जाता है। तथा कुछ देर के बाद यह दोनों इलेक्ट्रोड उच्च विभव पर चला जाता है जिसके कारण इन दोनों इलेक्ट्रोडो को किसी विधुत परिपथ से जोड़ देने पर विधुत धारा का प्रवाह कैथोड से एनोड की तरफ होने लगता है।

विधुत रासायनिक सेल में लवण सेतु के द्वारा आयनों का प्रवाह होता है जबकि बाहरी परिपथ में इलेक्ट्रॉनों का प्रवाह होता है।

विधुत रासायनिक सेल की विशेषताएँ :-

i. एनोड को हमेश बाँयी ओर तथा कैथोड को दाँयी ओर लिखा जाता है।

ii. एनोड पर हमेशा ऑक्सीकरण की घटना होती है ,जबकि कैथोड पर अवकरण की घटना होती है।

iii. यदि कोई सेल ज़िंक तथा कॉपर से बना हुआ हो तो अभिक्रिया के दौरान zn के इलेक्ट्रोड का द्रव्यमान घटता है जबकि कॉपर के इलेक्ट्रोड का द्रव्यमान बढ़ जाता है।

क्योकि जिंक के इलेक्ट्रोड पर ऑक्सीकरण क्रिया होने के कारण जिंक के परमाणु इलेक्ट्रोड से निकल कर विलयन में चला जाता है। जबकि कॉपर के इलेक्ट्रोड पर अवकरण की क्रिया होने के कारण यह इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके विलयन से इलेक्ट्रोड पर चला जाता है।

iv. विधुत रासायनिक सेल में ऑक्सीकरण तथा अवकरण की घटनाएँ साथ-साथ होती है। अतः इसे रेडॉक्स अभिक्रिया भी कहा जाता है।

v. विधुत रासायनिक सेल में लवण सेतु के द्वारा आयनों का प्रवाह होता है जबकि बाहरी परिपथ में इलेक्ट्रॉन का प्रवाह होता है।

vi. विधुत रासायनिक सेल में एनोड ऋणात्मक तथा कैथोड धनात्मक होता है।

*इलेक्ट्रोड विभव (Electrode Potential)

किसी इलेक्ट्रोड के द्वारा इलेक्ट्रॉन त्यागने या ग्रहण करने की क्षमता को इलेक्ट्रोड विभव कहा जाता है।

*मानक इलेक्ट्रोड विभव (Standard Electrode Potential)

मानक ताप (298K) एवं मानक सांद्रण पर (1M) किसी इलेक्ट्रोड के द्वारा इलेक्ट्रॉन त्यागने या ग्रहण करने की क्षमता को मानक इलेक्ट्रोड विभव कहा जाता है। 

इसे 'E˙' (Enode) के द्वारा सूचित किया जाता है।

किसी भी तत्व क मानक इलेक्ट्रोड विभव हाइड्रोजन से तुलना करके ज्ञात किया जाता है। क्योकि हाइड्रोजन का मानक इलेक्ट्रोड विभव शून्य होता है।

किसी भी विधुत रासायनिक सेल में यदि इलेक्ट्रोड जिंक तथा कॉपर का हो तो जिंक के इलेक्ट्रोड पर ऑक्सीकरण की क्रिया होती है जबकि कॉपर के इलेक्ट्रोड पर अवकरण की क्रिया होती है।

जैसे :-

Zn → Zn++ +2e (ऑक्सीकरण)

Cu++  + 2e → Cu (अवकरण)

*किसी रेडॉक्स अभिक्रिया से सेलों का निरूपण :-

i. सेलों का निरूपण करते समय एनोड को हमेशा बांयी ओर तथा कैथोड को हमेशा दाँयी ओर लिखा जाता है।

ii. इलेक्ट्रोड को विलयन से अलग करने के लिए एक उद्रग रेखा का प्रयोग किया जाता है।

iii. एनोड पर ऑक्सीकरण को तथा कैथोड पर अवकरण को दर्शाया जाता है।

iv. दोनों विलयनों को अलग-अलग दर्शाने के लिए दो उद्रग रेखा का प्रयोग किया जाता है।

v. विधुत रासायनिक सेल में यदि कोई पदार्थ गैस के रूप में उपस्थित हो तो इलेक्ट्रोड के रूप में प्लैटिनम के छड़ का इस्तेमाल किया जाता है।

*विधुत रासायनिक श्रेणी (Electro Chemical Series)

किसी भी तत्व का मानक इलेक्ट्रोड विभव हइड्रोजन से तुलना करके ज्ञात करने के बाद उसे आरोही या अवरोही क्रम में सजाने पर जो श्रेणी प्राप्त होता है ,उसे विधुत रासायनिक श्रेणी कहा जाता है।

जैसे :-Cu = 0.34 volt , Zn = -0.76 volt , Ag = 0.80 volt

विधुत रासायनिक श्रेणी के अनुसार जिस तत्व का मानक इलेक्ट्रोड विभव जितना कम होता है उसमें इलेक्ट्रॉन त्यागने की क्षमता उतने ही अधिक होती है।

इस श्रेणी के द्वारा यह असानी से पता लगाया जा सकता है की कौन सा इलेक्ट्रोड कैथोड का कार्य करेगा तथा कौन सा इलेक्ट्रोड एनोड का कार्य करेगा।

*नर्न्स्ट समीकरण (Nernst Equation)

किसी भी सेल का इलेक्ट्रोड विभव उस सेल में उपस्थित विलयन के सांद्रण पर भी निर्भर करता है। अतः इसी से संबंधित नर्न्स्ट नामक वैज्ञानिक ने एक समीकरण का प्रतिपादन किया ,जिसे नर्न्स्ट का समीकरण कहा जाता है।

इनके अनुसार किसी सेल का इलेक्ट्रोड विभव :-

Ecell = E0cell – 0.059/n log

जहाँ n स्थान्तरित होने वाले इलेक्ट्रॉन की संख्या है।

*सांद्रण सेल (Concentration Cell)

वैसा सेल जिसमें एक ही प्रकार के विलयन का प्रयोग किया जाता है ,किन्तु उसका सांद्रण अलग-अलग होने के कारण एक ऐनोड तथा दूसरा कैथोड का कार्य करने लगता है ,सांद्रण सेल कहलाता है।

*ईंधन सेल (Fuel Cell)

वैसा सेल जिसमें हाइड्रोजन ,मीथेन तथा मिथेनॉल को जलाने पर प्राप्त ऊष्मा ऊर्जा को विधुत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है ,ईंधन सेल कहलाता है। ईंधन सेल बहुत अधिक लाभकारी होता है। क्योकि वह बहुत कम प्रदुषण उत्पन्न करता है तथा हल्का होने के कारण एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना आसान होता है ,जिसके कारण इसका उपयोग अंतरिक्ष यानों में प्रयोग किया जाता है।

*सेल (Cell):-वैसा यंत्र जो रासायनिक ऊर्जा को विधुत ऊर्जा में परिवर्तित करता है ,सेल कहलाता है।

सेल दो प्रकार के होते है।

i. प्राथमिक सेल (Primary Cell)

ii. द्वितीयक सेल (Secondary Cell)

i. प्राथमिक सेल:-वैसा सेल जिसे एक बार उपयोग में लाने के बाद Recharge करके बार-बार उपयोग में नहीं लाया जा सकता है ,उसे प्राथमिक सेल कहा जाता है।

जैसे :-लेक्लाचे सेल ,मरकरी सेल

ii. द्वितीयक सेल:-वैसा सेल जिसे एक बार उपयोग में लाने के बाद भी पुनः Recharge करके बार-बार उपयोग में लाया जा सकता है ,द्वितीयक सेल कहलाता है।

जैसे :-डेनियल सेल ,लिथियम आयन बैटरी

*गिब्स ऊर्जा या मुक्त ऊर्जा (Gibb's Energy Or Free Energy)

किसी सेल से विधुत धारा प्रवाहित होने के क्रम में उस सेल के द्वारा जितनी ऊर्जा की खपत होती है उसे गिब्स ऊर्जा या मुक्त ऊर्जा कहा जाता है।

इसे 'ΔG ' के द्वारा सूचित किया जाता है।

ΔG = -nfE0

यदि कोई सेल साम्यवस्था में है तो उसके लिए ΔG का मान शून्य होता है। जबकि सेल से विधुत धारा प्रवाहित हो रहा है तो इसके लिए ΔG का मान ऋणात्मक होता है।

*संक्षारण (Corrosion)

किसी भी धातु को ऑक्सीजन ,कार्बन डाइऑक्साइड या जल वाष्प की उपस्थिति में क्षय होने की प्रक्रिया को धातुओं का संक्षारण कहा जाता है।

लोहे में जंग लगना संक्षारण का ही एक रूप है। लोहे में जंग लगने पर लोहा ऑक्साइड में बदल जाता है। अतः संक्षारण की घटना को रोकने के लिए धातुओं को पेंट कर दिया जाता है या एक धातु के ऊपर दूसरे धातु का परत चढ़ा दिया जाता है।


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