Class12th Chemistry Notes In HIndi
पृष्ठीय रसायन(Surface Chemistry)
⇒भौतिक
रसायन की वह शाखा जिसके अंतर्गत किसी पदार्थ के सतह पर होने वाली घटनाओं के बारे
में अध्ययन किया जाता है,पृष्ठीय रसायन कहलाता है।
जैसे :-लोहे में जंग लगना ,किसी
धातु पर दूसरे धातु का परत चढ़ाना
*अवशोषण(Absorption):-वैसी
प्रक्रिया जिसमें किसी ठोस पदार्थ में द्रव अथवा गैस का अणु समा जाता है,अवशोषण
कहलाता है।
जैसे :-जब चौक के ऊपर जल की बुँदे
गिराई जाती है तो वह जल चौक के द्वारा अवशोषित हो जाता है।
*अधिशोषण(Adsorption):-वैसी
घटना जिसमें किसी ठोस पदार्थ की सतह पर कोई द्रव अथवा गैस का अणु चिपक जाता है,अधिशोषण
कहलाता है।
जैसे :-चारकोल की सतह पर गैस के अणुओं
का चिपकना।
*शोषण(Sorption):-वैसी
प्रक्रिया जिसमें अधिशोषण एवं अवशोषण दोनों घटनाएं होती है,उसे
शोषण कहा जाता है।
जैसे :-जब H2
गैस के बीच Pt धातु को रखा जाता है तो H2 गैस
पहले Pt की सतह पर अधिशोषित होता है फिर धीरे-धीरे
उसमें प्रवेश करने लगता है जिसे शोषण कहा जाता है।
*विशोषण
(Desoption):-किसी ठोस की सतह पर अधिशोषित द्रव या गैस को
अलग करने की प्रक्रिया को विशोषण कहा जाता है।
➤किसी द्रव या ठोस के सतह के निचे वाले
अणुओं के बीच संतुलित बल कार्य करता है ,किन्तु उसके सतह पर वाले अणुओं के बीच असंतुलित
बल कार्य करता है जिसके कारण वह किसी दूसरी पदार्थ के संपर्क में आने पर उसकी सतह
से चिपक जाता है।
➠अधिशोषण की विशेषताएँ :-
➤अधिशोषण एक स्वतः होने वाली प्रक्रिया
है।
➤यह अत्यंत तीव्र गति से होती है।
➤अधिशोषण एक ऊष्माक्षेपि प्रक्रिया है।
➤ अधिशोषण
की घटना में एन्थैल्पी का मान ऋणात्मक होता है।
➤साम्यावस्था के समय उसके मुक्त ऊर्जा
का मान शून्य हो जाता है।
Note:-जो गैस जितना आसानी से द्रवीभूत होता है उसे
अधिशोषित होने की क्षमता उतनी ही अधिक होती है।
जैसे :-NH3
➠अधिशोषण मुख्यतः दो प्रकार के होते है
:-
1. भौतिक अधिशोषण
2. रासायनिक अधिशोषण
1. भौतिक अधिशोषण :-जब अधिशोषक तथा अधिशोषित
पदार्थ एक-दूसरे से कमजोर Wonderwalls बल के द्वारा जुड़ा होता है तो उसे भौतिक
अधिशोषण कहा जाता है।
जैसे :-निकेल की सतह पर हाइड्रोजन गैस
का अधिशोषित होना।
2. रासायनिक अधिशोषण :-जब अधिशोषक तथा अधिशोषित
पदार्थ एक-दूसरे से मजबूत रासायनिक बंधन के द्वारा जुड़ा होता है तो उसे रासायनिक
अधिशोषण कहा जाता है।
जैसे :-किसी भी रासायनिक बंधन का बनना।
➥सांद्रण के आधार पर भी अधिशोषण दो
प्रकार के होते है :-
1. धनात्मक अधिशोषण:-यदि अधिशोषक के पृष्ठ पर
अणुओं का सांद्रण पिंड की तुलना में अधिक हो तो उसे,धनात्मक अधिशोषण कहा जाता है।
2. ऋणात्मक अधिशोषण:-यदि अधिशोषक के पृष्ठ पर
अधिशोषित होने वाले अणुओं का सांद्रण पिंड की तुलना में कम होता है तो,उसे
ऋणात्मक अधिशोषण कहा जाता है।
*फ्रैंडलिक
का अधिशोषण समताप
⇒फ्रैंडलिक
के अनुसार किसी ठोस पदर्थ की सतह पर अधिशोषित होने वाली गैस उसके ताप एवं दाब पर
निर्भर करता है। अर्थात,निश्चित ताप पर किसी अधिशोषक के पृष्ठ पर जमा
होने वाली गैस की मात्रा उसके दाब के 1/n घात का सीधा समानुपाती होता है।
x/m ∝ P1/n
x/m = kp.1/n
*अधिशोषण
का प्रयोग :-
i. मास्क के रूप में जहरीली गैसों को रोकने के
लिए।
ii. किसी विसर्ग नाली में उच्च निर्वात उत्पन्न
करने के लिए।
iii. नमि युक्त हवा के शुष्क बनाने के लिए।
iv. रंगीन विलयन में चारकोल मिलाकर रंगहीन बनाने के
लिए।
v. किसी रासायनिक अभिक्रिया में उत्प्रेरक के रूप में भी अधिशोषण का प्रयोग किया जाता है।
*उत्प्रेरक
(Cataliyst)
⇒वैसा
पदार्थ जो किसी रासायनिक अभिक्रिया में जाकर उसमें भाग लिए बिना ही अभिक्रिया के
वेग को प्रभावित कर देता है ,उत्प्रेरक कहलाता है।
जैसे :- N2 + H2 (H2S)
→ NH3
जब O2 तथा H2 को प्लैटिनम की उपस्थिति में
अभिक्रिया कराई जाती है तो यह अत्यंत गति से H2O
का निर्माण कर लेता है। अतः Pt उत्प्रेरक
का कार्य करता है।
H2 + O2 (Pt) → H2O
➥उत्प्रेरक की विशेषताएँ :-
i. उत्प्रेरक की थोड़ी-सी मात्रा भी अभिकारक के
अधिक मात्रा को प्रभावित कर सकता है।
ii. किसी विशेष प्रकार के अभिक्रिया के लिए विशेष
प्रकार के उत्प्रेरक का ही प्रयोग किया जाता है।
iii. उत्प्रेरक किसी अभिक्रिया को शुरू नहीं करता है,बल्कि
मंद गति वाले अभिक्रिया को तीव्र कर देता है।
iv. उत्प्रेरक किसी अभिक्रिया के साम्यावस्था को
नहीं बदलता है बल्कि उसके समय को कम कर देता है।
v. उत्प्रेरक किसी अभिक्रिया में जाकर उसके
संक्रियण ऊर्जा को घटा देता है।
➠उत्प्रेरक मुख्यतः दो प्रकार के होते
है :-
1. समांग उत्प्रेरक(Homogeneous Catalyst)
2. विसमांग उत्प्रेरक(Heterogeneous Catalyst)
1. समांग उत्प्रेरक:-यदि किसी अभिक्रिया में
अभिकारक,प्रतिफल तथा उत्प्रेरक सभी की भौतिक अवस्था
समान हो तो उसे समांग उत्प्रेरक कहा जाता है।
जैसे :-So2 + O2 (NO) → So
2. विसमांग उत्प्रेरक:-यदि किसी अभिक्रिया में
अभिकारक,प्रतिफल तथा उत्प्रेरक सभी की भौतिक अवस्था
समान नहीं हो तो उसे विसमांग उत्प्रेरक
कहा जाता है।
जैसे :- N2 + H2
(लौह चूर्ण) → NH3
हेवर विधि के द्वारा अमोनिया गैस के
उत्पादन में लौह चूर्ण का प्रयोग किया जाता है जो ठोस अवस्था में रहता है। अतः यह
विसमांग उत्प्रेरक कहलाता है।
*वर्धक
(Promoter):-वैसे पदार्थ जो किसी अभिक्रिया में जाकर
उत्प्रेरक की क्रियाशीलता को बढ़ाता है ,वर्धक कहलाता है।
जैसे :-हेवर विधि के द्वारा अमोनिया के
उत्पादन में लौह चूर्ण की क्रियाशीलता को बढ़ाने के लिए मौलिबेडिनम धातु का प्रयोग
किया जाता है जो वर्धक कहलाता है।
*विष
(Poision):-वैसा पदार्थ जो किसी रासायनिक अभिक्रिया में
जाकर उत्प्रेरक की क्रियाशीलता को घटा देता है ,विष कहलाता है।
जैसे :-हेवर विधि से अमोनिया के
उत्पादन में H2S मिला देने पर वह लौह चूर्ण के क्रियाशीलता को
कम कर देता है ,अतः इसे विष कहा जाता है।
*क्रियाशीलता
(Reactivity):-किसी उत्प्रेरक के पृष्ठ पर अभिकारक के अणुओं
को अधिशोषित होने की क्षमता को उस उत्प्रेरक की क्रियाशीलता कहा जाता है।
*चयनशीलता
(Selectivity):-किसी उत्प्रेरक की वह क्षमता जो किसी विशेष
प्रकार के प्रतिफल के लिए अभिक्रिया के दिशा निर्देश करता है ,चयनशीलता
कहलाता है।
*एंजाइम
(Enzyme):-एंजाइम एक जटिल प्रोटीन है जो जैव रसायनिक
क्रियाओं में उत्प्रेरक का कार्य करता है।
जैसे :-पेप्सिन ,माल्टोज
,जाइमेज
➥एंजाइम की विशेषताएँ :-
i. एंजाइम इतने अधिक क्रियाशील होते है,की
जिसके एक अणु अभिकारक के 10 लाख अणुओं को प्रभावित कर सकते है।
ii. किसी विशेष प्रकार की अभिक्रिया के लिए विशेष
प्रकार का एंजाइम का प्रयोग किया जाता है।
iii. ताप के एक निश्चित मान तक एंजाइम सबसे अधिक
क्रियाशील होता है। इस ताप को इष्टम ताप (Optimum
Temperature) कहा जाता है।
iv. यदि किसी विलयन का pH मान
5 -7 के बिच होता है तो एंजाइम बहुत अधिक क्रियाशील
होता है।
v. एंजाइम की क्रियाशीलता को बढ़ाने के लिए विटामिन
का प्रयोग किया जाता है। अतः विटामिन को सहः एंजाइम भी कहा जाता है।
*कोलाइडी
विलयन :-वैसा विषमांग विलयन जिसमें परिक्षिप्त प्रावस्था के कण परिक्षेपण माध्यम
के ऊपर फैला हुआ रहता है तो उसे कोलाइडी विलयन कहा जाता है।
जैसे :-कुहासा ,बादल
,स्याही
➤कोलाइडी विलयन को सॉल भी कहा जाता है ,जिसमें
यदि परिक्षेपण माध्यम का रूप गैस हो तो उसे एरोसॉल भी कहा जाता है।
*एल्कोसॉल
:-वैसा कोलॉइडी विलयन जिसमें परिक्षेपण मध्यम के रूप में एल्कोहल उपस्थित रहता है ,एल्कोसॉल
कहलाता है।
*हाइड्रोसॉल
:-जिस परिक्षेपण माध्यम के रूप में जल उपस्थित रहता है।
*बेंजोसॉल :-इसमें परिक्षेपण माध्यम के रूप में बेंजीन उपस्थित रहता है।
*पायस
(Emulsion)
⇒वैसा
कोलॉइडी विलयन जिसमें परोक्षेपण माध्यम तथा परिक्षिप्त प्रवस्था दोनों द्रव के रूप
में उपस्थित रहता है तो उसे पायस कहा जाता है।
➠यह दो प्रकार के होते है :-
1. जल में तेल का पायस :-वैसा कोलॉइडी विलयन
जिसमें परिक्षेपण माध्यम के रूप में जल तथा परिक्षिप्त प्रवस्था के रूप में तेल
उपस्थित रहता है तो उसे जल में तेल का पायस कहा जाता है।
जैसे :-दूध
2. तेल में जल का पायस :-वाइस कोलॉइडी विलयन
जिसमें परिक्षेपण माध्यम के रूप में तेल तथा परिक्षिप्त प्रवस्था के रूप में जल
उपस्थित रहता है ,तो उसे तेल में जल का पायस कहा जाता है।
जैसे :-मक्खन
Note :-गैस कोप गैस के साथ मिलाकर कोलॉइडी विलयन नहीं
बनाया जा सकता है ,क्योकि दोनों की मिश्रण समांग हो जाता है।
➠ परिक्षेपण माध्यम तथा परिक्षिप्त प्रवस्था के
बीच आकर्षण बल के आधार पर कोलॉइडी विलयन दी प्रकार के होते है :-
1. द्रव-स्नेही कोलॉइड :-यदि परिक्षेपण माध्यम तथा
परिक्षिप्त प्रवस्था के बीच आकर्षण बल मजबूत होता है तो उसे द्रव-स्नेही कोलॉइड
कहा जाता है।
जैसे :-गोंद ,प्रोटीन
2. द्रव-विरोधी कोलॉइड :-यदि परिक्षेपण माध्यम तथा
परिक्षिप्त प्रवस्था के बीच आकर्षण बल कमजोर होता है तो उसे द्रव-विरोधी कोलॉइड
कहा जाता है।
➠कणों के Size के
आधार पर कोलॉइडी विलयन तीन प्रकार के होते है :-
1. बहु-आण्विक कोलॉइड (Multi-molecular colloid)
2. वृहद-आण्विक कोलॉइड (Macro-Molecular Colloid)
3. सहचारी कोलॉइड (Associated Colloid)
1. बहु-आण्विक कोलॉइड:-जब किसी पदार्थ के
छोटे-छोटे कण आपस में जुड़कर एक बड़े कण का निर्माण करता है,तो
उसे बहु-आण्विक कोलॉइड कहा जाता है।
जैसे :-Gold Sal ,Salfar Sal
2. वृहद-आण्विक कोलॉइड:-जब किसी पदार्थ के बड़े कण
आपस में जुड़कर कोलाइडी विलयन बनाता है तो उसे वृहद-आण्विक कोलॉइड कहा जाता है।
जैसे :-प्रोटीन ,स्टार्च
3. सहचारी कोलॉइड:-वैसा कोलाइडी विलयन जो कम
सांद्रण पर वैधुत अपघट्य का कार्य करता है तथा अधिक सांद्रण हो जाने पर कोलाइडी
विलयन में बदल जाता है तो उसे सहचारी कोलॉइड कहा जाता है।
जैसे :-मिसेल
*पेप्टीकरण
(Peptization):-किसी वैधुत अपघट्य में अवक्षेप को मिलाकर
कोलाइडी विलयन बनाने की प्रक्रिया को पेप्टीकरण कहा जाता है।
जैसे :-जब फेरिक हाइड्रोऑक्साइड
अवक्षेप के साथ फेरिक क्लोराइड वैधुत अपघट्य के रूप में मिलाया जाता है तो दोनों
मिलकर कोलाइडी विलयन बना लेता है।
*अपोहन
(Dialysis):-कोलाइडी विलयन में उपस्थित अशुद्धियों को
अर्द्धपरगम्य झिल्ली के द्वारा प्रवाहित करके दूर किया जाता है तथा शुद्ध कोलाइडी
विलयन प्राप्त किया जाता है तो इसी प्रक्रिया को अपोहन कहा जाता है।
*सकंदन
(Coagulation):-किसी कोलाइडी विलयन को विशेष प्रकार के वैधुत
अपघट्य को मिलाकर अवक्षेप प्राप्त करने की प्रक्रिया को सकंदन कहा जाता है।
*ब्राउनी
गति (Brownian Motion):-किसी भी कोलाइडी विलयन के कण स्थिर अवस्था में
नहीं रहते है,बल्कि सभी दिशाओं में इधर-उधर गति करते रहते
है। अतः कोलाइडी कणों के इस गति को ब्राउनी गति कहा जाता है।
*टिंडल
प्रभाव (Tyndal Effect):-जब प्रकाश की किरणें किसी कोलाइडी विलयन से
होकर गुजरती है तो कणों का आकार बड़ा होने के कारण प्रकाश के प्रकीर्णन की घटना हो
जाता ही ,जिससे विलयन के कण स्पष्ट दिखाई पड़ने लगते है।
इस घटना को टिंडल प्रभाव कहा जाता है।
*वैधुत
कण संचलन
⇒जब
किसी कोलाइडी विलयन से होकर विधुत धारा प्रवाहित की जाती है तो कोलाइडी विलयन के
कण धनायन एवं ऋणायन में अपघटित हो जाता है तथा कैथोड एवं एनोड की तरफ गमन करने
लगता है इसी घटना को वैधुत कण संचलन कहा जाता है।
*गोल्ड
संख्या (Gold Number)
⇒किसी
कोलाइडी विलयन के 10ml गोल्ड के सॉल में 10% NaCl मिलाने
पर यदि वह सकंदन की क्रिया को रोक देता है तो उसे गोल्ड संख्या कहा जाता है।
➤जिस कोलाइडी विलयन का गोल्ड संख्या
जितना अधिक होता है उसमें परिरक्षण क्षमता उतना ही कम होती है।
➤जिलेटिन की गोल्ड संख्या सबसे कम होती
है ,किन्तु परिरक्षण क्षमता सबसे अधिक होती है।
➤ स्टार्च
की गोल्ड संख्या सबसे अधिक होती है ,किन्तु परिरक्षण क्षमता सबसे कम होती है।
*हार्डी
एवं शुल्से नियम :-हार्डी एवं शुल्से नियम के अनुसार ,जब
किसी वैधुत अपघट्य को किसी कोलाइडी विलयन में मिलाया जाता है तो विपरीत आवेश वाले
आयन आपस में अवक्षेपित होने लगता है,जिसे सकंदन कहा जाता है। सकंदन की क्रिया उस
वैधुत अपघट्य में सबसे अधिक होती है जिसकी संयोजकता अधिक हो।
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