P-Block के तत्व
⇒वैसे तत्व जिसका अंतिम इलेक्ट्रॉन P-उपकक्षा में उपस्थित रहता है ,P-ब्लॉक का तत्व कहलाता है।
आवर्त सारणी में वर्ग 13-18 तक के तत्वों को P-ब्लॉक का तत्व कहा जाता है।
➤आवर्त सारणी में P-ब्लॉक ही एक ऐसा ब्लॉक है जिसमें धातु ,अधातु एवं उपधातु तीनों प्रकार का तत्व उपस्थित रहता है। अतः यह प्रायः ठोस ,द्रव्य और गैस तीनों अवस्थाओं में पाया जाता है।
➤ब्रोमीन ही एक ऐसा धातु है जो द्रव्य के रूप में पाया जाता है।
➤P-ब्लॉक के तत्वों का समान्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास [ns2np1-6]
*वर्ग-15 के तत्व*
➤वर्ग-15 के तत्व नाइटोजन ,फास्फोरस ,आर्सेनिक ,एंटिमनी तथा विस्मथ है,जिसकी परमाणु संख्याएँ
क्रमशः 7,15 ,33 ,51 तथा 83 होते है।
➤वर्ग-15 का सबसे छोटा तत्व
नाइट्रोजन है ,जबकि सबसे बड़ा तत्व विस्मथ
होता है।
➤नाइट्रोजन का आकार सबसे छोटा होने के कारण इसकी आयनन ऊर्जा इस वर्ग में सबसे
अधिक होती है।
➤इस वर्ग में नाइट्रोजन और फास्फोरस अधातु है ,आर्सेनिक तथा ऐंटिमनी उपधातु होता है तथा विस्मथ धातु के रूप में उपस्थित
रहता है।
➤वर्ग-15 में नाइट्रोजन गैस होता
है ,जबकि इस वर्ग का अन्य सभी तत्व ठोस होता
है।
➤वर्ग-15 तत्वों के संयोजी
इलेक्ट्रॉनों की संख्या 5 होती है ,जबकि इसकी संयोजकता 3 होती है।
➤वर्ग-15 में नाइट्रोजन सबसे विशेष
गुण दर्शाता है,क्योकि -
i. नाइट्रोजन अपने वर्ग का सबसे छोटा तत्व
है।
ii. इसकी विधुत ऋणात्मकता इस वर्ग में सबसे
अधिक होती है।
iii. इसमें d-उपकक्षा उपस्थित नहीं रहता है।
*नाइट्रोजन
गैस (Nitrogen Gas)*
⇒नाइट्रोजन पेड़-पौधों एवं जिव-जंतुओं के
लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण गैस है क्योंकि वायुमंडल में उपस्थित 78% नाइट्रोजन में से कुछ पौधों के द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है तथा उसके
जड़ों की गाढ़ में मौजूद राइजोबियम नाम का बैक्ट्रिया उसे उर्वरक में बदल देता है।
*नाइट्रोजन गैस बनाने की विधि :-
1. प्रयोगशाला विधि :-प्रयोगशाला में जब अमोनिया क्लोराइड की अभिक्रिया सोडियम नाइट्रेट से कराई
जाती है तो यह अभिक्रिया करके पहले अमोनियम नाइट्रेट बना लेता है ,जिसे पुनः गर्म कर देने पर यह पुनः नाइट्रोजन गैस में बदल जाता है।
NH4Cl + NaNO2 → NaCl + NH4No2
NH4No2
2. तप्त ताँबा के द्वारा :-इस विधि में वायुमंडलीय हवा को एक नली से होकर प्रवाहित किया जाता है जिसमें
जुड़ा हुआ NaOH का घोल कार्बन डाइऑक्साइड
को अवशोषित कर लेता है ,H2SO4 का घोल जलवाष्प को अवशोषित कर लेता है। जबकि ऑक्सीजन तप्त ताँबा से
अभिक्रिया करके कॉपर का ऑक्साइड बना लेता है तथा शेष बचा नाइट्रोजन गैस नली के
सहारे गैसघर में जमा हो जाता है।
3. अमोनियम डाइक्रोमेट के
द्वारा :-जब अमोनियम डाइक्रोमेट को गर्म किया जाता है तो यह अपघटित होकर
नाइट्रोजन गैस उत्पन करता है।
(NH4)2
Cr2O7
4. धातु के एजाइड से :-जब किसी धातु के एजाइड को गर्म किया जाता है तो यह अपघटित होकर नाइट्रोजन गैस
का निर्माण करता है।
2NaN3
5. अमोनिया के द्वारा :-जब अमोनिया की अभिक्रिया नाइट्रिक ऑक्साइड के साथ कराई जाती है तो यह
नाइट्रोजन गैस उत्पन्न करता है।
NH3 + No → N2 + H2O
*नाइट्रोजन का भौतिक गुण :-
i. यह रंगहीन ,गंधहीन एवं स्वादहीन गैस है।
ii. यह जल में अविलेय है।
iii. यह बहुत ही कम क्रियाशील
होता है।
iv. इसका अणु दो परमाणुओं का बनता है।
*नाइट्रोजन का स्थिरीकरण (Fixation Of Nitrogen)
⇒वायुमंडलीय नाइट्रोजन गैस को किसी भी
विधि के द्वारा उसके यौगिकों में बदलने की प्रक्रिया को नाइट्रोजन का स्थिरीकरण
कहा जाता है।
➥नाइट्रोजन का स्थिरीकरण मुख्यतः दो विधियों से होता है।
1. प्राकृतिक विधि :-इस विधि में वायुमंडलीय नाइट्रोजन गैस को दलहन तथा तेलहन के पौधों के द्वारा
अवशोषित कर लिया जाता है तथा उसके जड़ों की गाठ में मौजूद राइजोवियम नाम का
बैक्ट्रिया उस नाइट्रोजन गैस को नाइट्रेट में बदल देता है जो पुनः संश्लेषित होकर
प्रोटीन में बदल जाता है जो पौधों के लिए उर्वरक का कार्य करता है।
2. कृत्रिम विधि के द्वारा :-
i. हेवर विधि :-इस विधि में नाइट्रोजन गैस को हाइड्रोजन गैस के साथ मिलाकर उच्च ताप पर लौह
चूर्ण उत्प्रेरक की उपस्थिति में अभिक्रिया कराया जाता है ,जिससे अमोनिया गैस का निर्माण हो जाता है।
N2 + 3H2
ii. वर्कलैंड आइड विधि :-इस विधि में नाइट्रोजन गैस को ऑक्सीजन के साथ मिलाकर विधुत शॉक की उपस्थिति
में अभिक्रिया कराया जाता है ,जिससे यह नाइट्रिक ऑक्साइड
में बदल जाता है। जिसकी अभिक्रिया पुनः ऑक्सीजन से करा देने पर नाइट्रोजन
डाइऑक्सइड बना लेता है। जिसमें जल मिला देने पर यह नाइट्रिक अम्ल में बदल जाता है।
N2 + O2
No + O2 →
No2
No2
+ H2O → HNo3
iii. कैल्सियम करबाइल के द्वारा
:-जब कैल्सियम करबाइल की अभिक्रिया नाइट्रोजन से कराई जाती है तो
यह अभिक्रिया करके पहले कैल्सियम साइनामाइट बना लेता ही। जिसकी अभिक्रिया पुनः जल
से करा देने पर यह अमोनिया गैस का निर्माण कर लेता है।
CaC2 + N2 → CaCN2 + C
CaCN2
+ H2O
→ NH3 + CaCo3
*अमोनिया
गैस*
*अमोनिया गैस बनाने की विधि
i. प्रयोगशाला विधि :-प्रयोशाला में अमोनिया क्लोराइड की अभिक्रिया कली चूर्ण या बुझा हुआ चुना के
साथ कराया जाता है तो यह अभिक्रिया करके अमोनिया गैस उत्पन्न करता है।
CaO + NH4Cl → CaCl2 + NH3 + H2O
ii. व्यापारिक विधि :-व्यापारिक स्तर पर अमोनिया गैस जिस विधि के द्वारा बनाया जाता है ,उसे हेवर विधि कहते है।
इस विधि में नाइट्रोजन गैस तथा हाइड्रोजन गैस के मिश्रण को दो
अलग-अलग नली द्वारा एक चैम्बर से प्रवाहित किया जाता है ,जिसमें संपीडक की सहायता से उच्चताप एवं दाब देख अभिक्रिया शुरू की जाती है।
किन्तु उत्प्रेरक की अनुउपस्थिति के कारण अभिक्रिया मंद गति से चलती है। अतः इस
गैस को पुनः एक दूसरी चैम्बर से गुजारा जाता है जिसमें उत्प्रेरक उपस्थित होने के
कारण अभिक्रिया तेजी से होने लगता है। परन्तु अमोनिया का बनना एक उत्क्रमणीय अभिक्रिया
है। इसीलिए NH3 के साथ-साथ नाइट्रोजन तथा
हाइड्रोजन का मिश्रण भी रहता है। जिसमे उच्च दाब देने पर अमोनिया गैस आसानी से
द्रवीभूत हो जाता है। जबकि शेष बचा हाइड्रोजन तथा नाइट्रोजन गैस का मिश्रण पुनः
उसी बर्तन में चला जाता है इस प्रकार अमोनिया गैस को द्रवित अवस्था में प्राप्त कर
लिया जाता है।
*अमोनिया का भौतिक गुण :-
i. यह एक तीव्र गंध वाला गैस है।
ii. यह जल में पूर्णतः विलेय होता है।
iii. इसकी प्रकृति क्षारीय होती
है।
*रासायनिक गुण
i. ऑक्सीजन से अभिक्रिया :-जब अमोनिया की अभिक्रिया ऑक्सीजन के साथ प्लैटिनम उत्प्रेरक की उपस्थिति में
कराया जाता है तो यह नाइट्रिक ऑक्साइड का निर्माण कर लेता है।
NH3
+ O2
ii. अमोनिया की प्रकृति क्षारीय होती है,अतः इसकी अभिक्रिया किसी अम्ल से करा देने पर यह लवण का निर्माण कर लेता है।
NH3
+ HCl → NH4Cl
iii. अमोनिया को जल में घुला
देने पर यह अमोनिया हाइड्राऑक्साइड बना लेता है।
NH3
+ H2O
→ NH4OH
iv. क्लोरीन से अभिक्रिया :-जब अमोनिया की अभिक्रिया क्लोरीन के अल्प मात्रा में कराई जाती है तो यह
नाइट्रोजन गैस उत्पन्न करता है ,जबकि अमोनिया की अभिक्रिया
क्लोरीन के अधिक मात्रा से करा देने पर यह नाइट्रोजन ट्राई क्लोराइड बना लेता है।
NH3
+ Cl2 (अल्प) → N2 + HCl
NH3
+ Cl2 (अधिक) → NCl3 + HCl
v. यूरिया का निर्माण :-जब अमोनिया को कार्बन
डाईऑक्साइड के साथ उच्च दाब पर अभिक्रिया कराई जाती है तो यह यूरिया का निर्माण कर
लेता है।
NH3
+ Co2
*उपयोग :-
i. अमोनिया गैस आसानी से द्रवीभूत होने वाला
गैस है। जिसके कारण इसका उपयोग रेफ्रिजरेटर में किया जाता है।
ii. अमोनिया का उपयोग यूरिया के उत्पादन में
भी किया जाता है।
*नाइट्रिक
अम्ल*
*नाइट्रिक अम्ल बनाने की विधि
i. प्रयोगशाला विधि :-प्रयोगशाला में नाइट्रिक अम्ल बनाने के लिए चिली साल्ट पिटर या शोरा की
अभिक्रिया सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ कराई जाती है तो यह अभिक्रिया करके नाइट्रिक
अम्ल का निर्माण कर लेते है।
NaNo3 + H2So4 → Na2So4 + HNO3
KNO3
+ H2So4 →
K2So4 + HNO3
ii. व्यापारिक विधि :-व्यापारिक स्तर पर नाइट्रिक अम्ल मुख्यतः दो विधियों के द्वारा बनाया जाता है
:-
1. ओस्टवाल्ड विधि
2. वर्कलैंड आइड विधि
1. ओस्टवाल्ड विधि :-यह विधि नाइट्रिक अम्ल बनाने का सर्वोत्तम विधि है। इस विधि में अमोनिया गैस
की अभिक्रिया O2 के साथ प्लैटिनम
उत्प्रेरक के उपस्थित में कराया जाता है,जिससे अभिक्रिया करके यह नाइट्रिक ऑक्साइड बना लेता है। यहाँ नाइट्रिक
ऑक्साइड का बनना एक ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया है। अतः इसका तापमान घटने लगता है।
किन्तु इस अभिक्रिया को बनाये रखने के लिए इसका तापमान लगभग 973-1073
K के बीच कर दिया जाता है। किन्तु इस उच्च ताप अभिक्रिया उल्टी
दिशा में न शुरू न हो जाए जिसके कारण नाइट्रिक ऑक्साइड को समय-समय पर वहां से हटा
लिया जाता है। तथा इस ताप को कम करके 473K कर दिया जाता है। और इस ताप पर नाइट्रिक ऑक्साइड की अभिक्रिया ऑक्सीजन से
कराई जाती ,जिसके कारण यह नाइट्रोजन
डाइऑक्सइड में बदल जाता है। जिसे पुनः जल में मिला देने पर यह नाइट्रिक अम्ल का
निर्माण कर लेता है।
NH3
+ O2
No
+ O2 → No2
No2
+ H2O
→HNO3
2. वर्कलैंड आइड विधि :-यह नाइट्रिक अम्ल बनाने की दूसरी व्यापारिक विधि है। इस विधि में नाइट्रोजन
गैस को ऑक्सीजन के साथ मिलाकर विधुत शॉक की उपस्थिति में अभिक्रिया कराया जाता है ,जिससे अभिक्रिया करके नाइट्रिक ऑक्साइड बन जाता है। नाइट्रिक ऑक्साइड का बनना
ऊष्माशोषी अभिक्रिया है। अतः इसका तापमान बढ़कर लगभग 2300-2500K
हो जाता है। इस उच्च ताप पर अभिक्रिया उल्टी दिशा में न शुरू
हो जाए इसलिए नाइट्रिक ऑक्साइड को समय-समय पर हटाना पड़ता है। उसके बाद तापमान को
कम करके लगभग 473K कर दिया जाता है। तथा इस
ताप पर नाइट्रिक ऑक्साइड को पुनः O2 के साथ अभिक्रिया कराया जाता ही। जिससे यह नाइट्रोजन डाईऑक्साइड में बदल
जाता है। जिसे फिर जल में मिलाकर नाइट्रिक अम्ल व्यापारिक स्तर पर प्राप्त कर लिया
जाता है।
N2 + O2 → No
No
+ O2 → No2
No2
+H2O
→ HNO3
*भौतिक गुण :-
i. शुद्ध नाइट्रिक अम्ल रंगहीन द्रव्य होता
है ,किन्तु हवा में खुला छोड़ देने पर इसका
रंग हल्का पीला हो जाता है।
ii. यह जल में पूर्णतः विलेय होता है।
iii. इसका स्वाद खट्टा होता है।
iv. यह एक प्रबल ऑक्सीकारक होता है।
*रासायनिक गुण :-
i. अपघटन :-जब नाइट्रिक अम्ल को उच्च ताप तक गर्म किया जाता है तो यह अपघटित होकर
ऑक्सीजन गैस उत्पन्न करता है।
HNO3
ii. क्षार से अभिक्रिया :-नाइट्रिक अम्ल की अभिक्रिया किसी क्षार से करा देने पर यह लवण और जल बना लेता
है।
NaOH + HNO3 → NaNo3
+ H2
iii. धातुओं से अभिक्रिया :-यदि नाइट्रिक अम्ल की अभिक्रिया क्रियाशील धातुओं से कराई जाती है तो,यह हाइड्रोजन गैस उत्पन्न करता है।
Na
+ HNO3 → NaNo3 +H2
➤यदि कॉपर धातु की अभिक्रिया सान्द्र नाइट्रिक अम्ल से कराई जाती है तो यह
अभिक्रिया करके नाइट्रोजन डाईऑक्साइड बना लेता है।
Cu + HNO3 (सान्द्र) → Cu(NO3)2 + No2 + H2O
➤यदि कॉपर धातु की अभिक्रिया तनु नाइट्रिक अम्ल के साथ कराई जाती है तो यह
अभिक्रिया करके नाइट्रिक ऑक्साइड का निर्माण कर लेता है।
Cu + HNO3 (तनु) → Cu(NO3)2 + No + H2O
➤यदि नाइट्रिक अम्ल की अभिक्रिया जिंक धातु के साथ कराई जाती है तो यह
अभिक्रिया करके सान्द्र अवस्था में नाइट्रोजन डाईऑक्साइड बनाता है।
Zn + HNO3 (सान्द्र) → Zn(NO3)2 + No2 + H2O
➤यदि जिंक धातु की अभिक्रिया तनु नाइट्रिक अम्ल के साथ कराई जाती है तो यह
नाइट्रस ऑक्साइड का निर्माण कर लेता है।
Zn + HNO3 (तनु) → Zn(NO3)2 + No + H2O
iv. अधातुओं के साथ अभिक्रिया
:-नाइट्रिक अम्ल एक प्रबल ऑक्सीकारक है ,अतः यह कार्बन को ऑक्सीकृत करके कार्बोनिक अम्ल में ,सल्फर को सल्फ्यूरिक अम्ल में ,फास्फोरस को फास्फोरिक अम्ल में ,तथा आयोडीन को हाइड्रो-आयोडिक अम्ल में बदल देता है।
C + HNO3 → H2CO3
+ No2
S + HNO3 → H2SO4
+ No2
P4 + HNO3
→ H3PO4 + No2
I2 + HNO3
→ HIO3 + No2
*वलय परिक्षण (Ring Test):-रिंग टेस्ट के द्वारा नाइट्रेट की जाँच की जाती है ,इस टेस्ट में किसी बर्तन में रखे हुए धातु के नाइट्रेट में आयरन सल्फेट मिलकर
उसमें धीरे-धीरे सल्फ्यूरिक अम्ल गिराया जाता है ,जिससे अभिक्रिया करके यह भूरे रंग का रिंग जैसी आकृति वाला जटिल पदार्थ बना
लेता है जिसे पेंटा एक्वा नाइट्रोसोनियम फेरस सल्फेट कहा जाता है। इसके बनने के
कारण उस बर्तन में नाइट्रेट की उपस्थिति का पता चल जाता है।
*अम्लराज (Aqua Regia):-हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा नाइट्रिक अम्ल के 3:1 के अनुपात वाले विलयन को अम्लराज कहा जाता है। इसका उपयोग सोना ,चाँदी जैसे धातुओं को शुद्ध करने के लिए किया जाता है।
*फास्फोरस*
⇒सभी जीवित जिव-जंतुओं एवं पेड़-पौधों के
लिए फास्फोरस एक उपयोगी तत्व है।
*फास्फोरस बनाने की विधि
➔जब फॉस्फेराइट चूर्ण को बालू के साथ मिलाकर गर्म किया जाता है तो यह पहले
कैल्सियम सिलिकेट तथा फॉस्फोरस पेंटा ऑक्साइड को पुनः कोक के साथ मिलाकर गर्म कर
देने पर यह फॉस्फोरस में बदल जाता है। किन्तु इस प्रकार से जो फॉस्फोरस बनता है
उसे श्वेत फॉस्फोरस कहा जाता है।
Ca3(PO4)2 + SiO2 → CaSiO3 + P2O5
P2O5
+ C → P4 + CO2
*गुण :-
i. यह एक पारदर्शी क्रिस्टलीय ठोस पदार्थ
है।
ii. यह मोम के जैसा मुलायम होता है।
iii. इसमें लहसुन की जैसी गंध
होती है।
iv. यह जल में अविलेय किन्तु कार्बन
डाईऑक्साइड में विलेय होता है।
v. इसे हवा में खुला छोड़ देने पर यह स्वतः
जलने लगता है। इस घटना को स्फुरदीप्ति कहा जाता है।
vi. यह बहुत अधिक क्रिया शील होता है। क्योकि इसकी आकृति चतुष्फलकीय होती है तथा बंधन कोण 60・ होता है। जिसके कारण इसके बंधनों में एक तनाव उत्पन्न होता है और कमजोर वन्डरवॉल्स बल होने के कारण यह बंधन आसानी से टूट जाता है।
*रासायनिक गुण :-
i. ऑक्सीजन से अभिक्रिया :-फॉस्फोरस,ऑक्सीजन के संपर्क में आकर
स्वतः जलने लगता है तथा फॉस्फोरस पेंटाक्साइड का निर्माण कर लेता है।
P4
+ O2 → P2O5
ii. क्लोरीन से अभिक्रिया :-जब श्वेत फॉस्फोरस की अभिक्रिया क्लोरीन के अल्प मात्रा से कराई जाती है ,तो यह फॉस्फोरस ट्राईक्लोराइड बना लेता है ,जबकि इसकी अभिक्रिया क्लोरीन के अधिक मात्रा से करा देने पर फॉस्फोरस पेंटा
क्लोराइड बना लेता है।
P4
+ Cl2 → PCl3
iii. कॉस्टिक सोडा :-जब श्वेत फॉस्फोरस की अभिक्रिया कॉस्टिक सोडा के साथ जलीय माध्यम में कराई
जाती है तो यह अभिक्रिया करके सोडियम हाइपो फ़ॉस्फाइट तथा फॉस्फीन गैस उत्पन्न करता
है।
P4 + NaOH + H2O → PH3 + NaH2Po2
*फॉस्फीन गैस(PH3)
⇒जब श्वेत फॉस्फोरस को कास्टिक सोडा के
साथ जलीय माध्यम में अभिक्रिया कराई जाती है,तो यह अभिक्रिया करके सोडियम हाइपो फ़ॉस्फ़ाइट तथा फॉस्फीन गैस उत्पन करता है।
P4 + NaOH + H2O → PH3 + NaH2Po2
*गुण :-
i. यह एक रंगहीन गैस है।
ii. इसमें सड़ी हुई मछली की जैसी गंध होती है।
iii. यह जल में अत्यंत कम विलेय
होता है।
iv. यह हवा से भारी होता है और विषैला भी
होता है।
v. इसकी प्रकृति क्षारीय होती है,क्योकि इसमें फॉस्फोरस के पास Lone Pair उपस्थित रहता है।
*उपयोग :-
i. Home Signal के रूप में।
ii. युद्ध क्षेत्र में धूमपट के रूप निर्माण में।
*NH3 का क्वथनांक PH3 से अधिक होता है,क्यों ?
⇒नाइट्रोजन तथा फॉस्फोरस एक ही वर्ग के
तत्व है ,किन्तु फॉस्फोरस का आकार बड़ा होने के
कारण इसका क्वथनांक अधिक होना चाहिए ,किन्तु NH3 में हाइड्रोजन बंधन
उपस्थित रहता है। इसीलिए इसका क्वथनांक PH3 से अधिक हो जाता है।
*PH3 का बंधन कोण PH4+से कम होता है,क्यों ?
⇒PH3 तथा PH4+ दोनों में फॉस्फोरस का प्रसंकरण SP3 होता है। अतः इसका बंधन कोण समान होना चाहिए। किन्तु PH3 में फॉस्फोरस के पास एक Lone Pair उपस्थित रहता है ,जो विकर्षण बल के कारण इसके बंधन कोण को कम कर देता है। इसलिए PH3का बंधन कोण PH4+से कम हो जाता है।
*लाल
फॉस्फोरस*
⇒जब श्वेत फॉस्फोरस को आयोडीन की उपस्थिति
में यह अक्रिया वातावरण में 573K ताप तक गर्म किया जाता है तो श्वेत फॉस्फोरस ही लाल फॉस्फोरस में बदल जाता
है।
*गुण :-
i. यह एक भूरे रंग का अपारदर्शी ठोस पदार्थ
है यह भी जल में अविलेय है किन्तु कार्बन डाई सल्फाइड में विलेय होता है।
ii. यह कम क्रियाशील होता है।
iii. इसे ऑक्सीजन में खुला छोड़
देने पर यह स्फुरदीप्ति की घटना प्रदर्शित नहीं करता है।
iv. यह विधुत का कुचालक होता है।
*लाल फॉस्फोरस की संरचना
*काला
फॉस्फोरस*
⇒जब श्वेत फॉस्फोरस को अत्यंत उच्च दाब
देकर उच्च ताप तक गर्म किया जाता है तो ,श्वेत फॉस्फोरस ही काला फॉस्फोरस में बदल जाता है।
*गुण :-
i. काला फॉस्फोरस का लगभग सभी गुण लाल
फॉस्फोरस से मिलता है,किन्तु यह विषैला होता है
तथा विधुत का सुचालक होता है।
*फॉस्फोरस का उपयोग
⇒फॉस्फोरस का उपयोग मुख्यतः दिया सलाय के रूप में ,चूहा मारने ;वाला विष बनाने में तथा उर्वरक के रूप में भी इसका उपयोग किया जाता है।
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