प्रजनन स्वास्थ्य (Reproductive Health)

 BIHAR BOARD CLASS 12TH BIOLOGY NOTES IN HINDI

प्रजनन स्वास्थ्य (Reproductive Health)

*मानव जनसँख्या वृद्धि (Human Population Growth)

जनसँख्या में वृद्धि का अर्थ है दो समान बिंदुओं के बीच उसमें पाए जाने वाले परिवर्तन से है।

भारत में जब जनगणना प्रारंभ हुई है तब से सदा धनात्मक वृद्धि हुई ,लेकिन सिर्फ 1921 का वर्ष अपवाद है।

भारत में जनसँख्या की सुचना जनगणना से मिलती है जो प्रत्येक 10 वर्षों पर कराया जाता है।

भारत में नियमित रूप से जनगणना 1881ई० में प्रारंभ हुई।

1991 के अनुसार भारत की जनसँख्या 84.39 करोड़ थी। जो 2001 में 100 करोड़ की सीमा पार कर गई।

2011 के जनगणना के अनुसार भारत की जनसँख्या 7.1 बिलियन पहुंच गया।

*लिंग संयोजन (Sex Composition)

जनसँख्या का लिंग संयोजन प्रायः एक अनुपात द्वारा व्यक्त किया जाता है जिसे Sex Ratio कहा जाता है।

*लिंग अनुपात (Sex Ratio):-भारत में यह अनुपात प्रति 1000 पुरषों पर स्त्रियों की संख्या के रूप में दर्शाया जाता है जिसे Sex Ratio कहा जाता है।

1991 के जनगणना के अनुसार भारत में लिंगा अनुपात 927 था। इसका आशय यह हुआ की 1000 पुरषों पर स्त्रियों की संख्या 927 है। जो अपेक्षाकृत संख्या में कम है।

भारत में लिंग अनुपात

वर्ष लिंग  अनुपात

1901             972

1911             964

1921             955

1931             950

1941             945

1951             946

1961             941

1971             930

1981             934

1991             927

2001             933

2011             940 

*जन्म नियंत्रण (Birth Control)

जन्म नियंत्रण के लिए अनेक विधियाँ प्रयोग में लाई जाती है। इसमें मुख्य रूप से निषेचन को रोका जाता है,गर्भनिरोध कहलाता है।

ये विधियाँ मुख्यतः दो प्रकार की है :-

1. अस्थाई विधियाँ (Temporary Methods)

2. स्थाई विधियाँ (Permanent Methods)

1. अस्थाई विधियाँ

ये विधियाँ निम्न प्रकार के है :-

i. सुरक्षित काल(Safe Period):-महिलाओं में ऋतुस्राव चक्र से एक सप्ताह से पहले तथा एक सप्ताह बाद सुरक्षित काल कहलाता है। इस समय में निषेचन की क्षमता कम होती है।

ii. रतिरोधी(Coitus):-यह जन्म नियंत्रण की एक पुरानी विधि है। इस विधि में मैथुन क्रिया के समय स्खलन से पहले ही शिशन को बाहर कर लिया जाता है। जिससे शुक्राणु मादा के गर्भाशय तक नहीं पहुँच पाता है ,जिससे निषेचन क्रिया नहीं हो पाती है।

iii. रासायनिक विधि(Chemicals Methods):-जैली ,Creams आदि पदार्थो को योनि में रख दिया जाता है। ये शुक्राणुओं के गमन को रोकता है जिससे निषेचन नहीं हो पाती है।

iv. यांत्रिक विधि (Mechanical Method):-इस विधि में पुरुष प्रजनन के समय निरोध (Condom) का प्रयोग करता है जिससे शुक्राणु मादा के गर्भाशय में प्रवेश नहीं करता है।

मादा प्रायः Diaphragm का प्रयोग करती है जिसके कारण निषेचन क्रिया को रोका जाता है।

v. अन्तः गर्भाशय युक्ति (Intra Uterine Device):-इसी विधि में Copper-T,Copper-L,Copper-7,Multiload 375 आदि का प्रयोग किया जाता है जो शुक्राणुओं के गति को रोकता है। जिससे निषेचन की क्रिया नहीं हो पाती है।

vi. मुख्ये गर्भनिरोधक युक्तियाँ (Oral Contraceptive Device):-प्रायः महिलायें Oral Pills जैसे : माला-डी ,माला-एस ,पर्ल ,सहेली आदि का प्रयोग करती है। इसका प्रयोग 21 दिनों तक लगातार किया जाता है।

vii. गर्भपात (Abortion):-Pergnancy के 12 सप्ताह तक की अवधि को सुरक्षित गर्भपात माना जाता है।

2. स्थाई विधियाँ

यह जन्म नियंत्रण की एक विधि है। इस विधि में मनुष्य के नर या मादा के प्रजनन अंग को शल्यचिकित्सा के द्वारा काट कर हटा दिया जाता है या काट कर बांध दी जाती है।

*शुक्रवाहिका उच्छेदन (Vasactomy):-यह जन्म नियंत्रण की स्थाई विधि है। इस विधि में पुरुष के Vasadeferens को काट कर बाँध दिया जाता है। जिसके कारण शुक्राणु निषेचन क्रिया में भाग नहीं लेता है।

*बधियाकरण (Castration):-इस विधि में पुरुष के दोनों वृषणों को शल्य क्रिया के द्वारा काट कर शरीर से अलग कर दिया जाता है। जिससे शुक्राणु का निर्माण बंद हो जाता है।

*Figure Of Tubectomy :-

इस विधि में मादा के शरीर में पाए जाने वाले अंडवाहिनी को काट कर बाँध दिया जाता है। जिससे निषेचन की क्रिया रुक जाती है।

*अंडाशय उच्छेदन (Ovarictomy):-इसी विधि में मादा के शरीर से दोनों अंडाशय को शल्य क्रिया के द्वारा काट कर शरीर से अलग कर दिया जाता है। जिसके फलस्वरूप शरीर में अंडाणु का निर्माण नहीं होता है।

*यौन संचारित रोग (Sexual Transmitted Disease)

मानव में लैंगिक प्रजनन पाया जाता है। इसमें Male एवं Female भाग लेती है। मैथुन क्रिया के दौरान संक्रमित Male या Female के द्वारा स्थान्तरित होने वाले रोग को यौन संचारित रोग कहा जाता है।

जैसे :-गोनोरिया ,सिफलिस ,एड्स आदि

इसके अलावे हिपेटाइटिस-बी बीमारी भी संक्रमण के द्वारा फैलता है।

ये बीमारी प्रायः Blood Transfusion (रक्त दान),शल्य चिकित्सक,असुरक्षित यौन सम्बन्ध के द्वारा काफी तेजी से फैलती है।

इस प्रकार की बिमारियों का निदान प्रायः रोगी के Blood Test (रक्त जाँच) के द्वारा एवं अन्य लक्षणों के माध्यम से पहचान की जाती है।

यौन सबंध बनाने के समय Condoms आदि का प्रयोग किया जाता है।

शैल्य क्रिया के दौरान बी-संक्रमित औजारों का प्रयोग किया जाना चाहिए।

रोगी में रक्त दान के समय रक्त की जाँच आवश्यक रूप से कर लेनी चहिए।

*बंध्याकरण (Infertility):-प्रायः मनुष्य में वैवाहिक जीवन के कई वर्षों के बाद भी संतान उत्पन्न नहीं होते है ,जिसे बंध्यता कहा जाता है।

ये स्त्री या पुरषों में उनके प्रजनन अंगों में गड़बड़ी के कारण ये समस्या उत्पन्न हो जाती है। ये समस्या प्रायः स्त्रियों में निषेचन का न होना एवं पुरषों के semen में प्रयाप्त मात्रा में शुक्राणुओं के कमी के कारण होती है।

*Test Tube Baby (परखनली शिशु)

सर्वप्रथम बाँच्छित जोड़े को चिन्हित कर लिया जाता है उसके बाद शल्य चिकित्सक विधि के द्वारा मादा के शरीर से अंडाणु को निकाल लिया जाता है। अंडाणु को शीशे के बने परखनली में रख दी जाती है। इसके बाद परखनली में शुक्राणुओं को डाला जाता है। परखनली में शुक्राणु एवं अंडाणु दोनों आपस में संलयन करते है,जिसे निषेचन कहा जाता है। निषेचन के बाद युग्मनज का निर्माण होता है। युग्मनज वृद्धि कर भ्रूण का निर्माण करता है।

भ्रूण को पुनः शैल्य चिकित्सा विधि के द्वारा उसी महिला के गर्भाशय में रोपित कर दिया जाता है।

इस प्रकार से उत्पन्न शिशु को Test Tube Baby (परखनली शिशु) कहा जाता है। 

*सारोगोट मदर(Surrogate Mother)

सर्वप्रथम Male एवं Female का चुनाव कर लिया जाता है,इसके बाद निषेचन की क्रिया कराई जाती है।

Zygote का निर्माण होता है ,Zygote विभाजित कर भ्रूण का निर्माण कर लेता है। भ्रूण को शैल्य चिकित्सा के द्वारा किसी दूसरे महिला के गर्भाशय में रोपित कर दिया जाता है।

निश्चित समय में नवजात शिशु का विकास होता है और स्वस्थ शिशु को महिला जन्म देती है ,जिसे सरोगोट मदर कहा जाता है।

*कृत्रिम गर्भाधान (Artificial Insemination)

यह विधि उन पुरषों के प्रयोग में लाई जाती है जिनके वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या काफी कम होती है। जिसके कारण गर्भधारण की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

इस विधि में पुरुष के वीर्य प्राप्त कर मादा के योनि में स्थान्तरित कर दिया जाता है। जिसे अंतः गर्भाशय गर्भाधान (I.U.I) कहा जाता है।

इस विधि में Male स्वयं पति होता है तो इस विधि को कृत्रिम गर्भाधान पति (A.I.H) कहा जाता है।

*अन्तः जिव द्रव्य शुक्राणु वेदन

इस विधि में शुक्राणुओं को प्रयोगशाला में अंडाणु से सीधे निषेचित कराया जाता है। इसके बाद बने युग्मनज या भ्रूण को मादा के गर्भाशय में रोपित कर दिया जाता है।

Note:-

परिवार नियोजन कार्यक्रम का शुरुआत 1951 में हुआ था।

वैवाहिक जीवन की आयु वैधानिक रूप से Female के लिए 18वर्ष तथा male के लिए 21 वर्ष सुनिश्चित है।

भारत सरकार ने 1971 में चिकित्सीय सह-गर्भता समापन को क़ानूनी स्वीकृति प्रदान की थी।

*शून्य जनसँख्या वृद्धि :-जब जन्म दर तथा शिशु मृत्यु दर बराबर होती है,उसे शून्य जनसँख्या वृद्धि कहते है। 



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